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अनोखा गांव: लोकनायक जेपी की कर्मभूमि सोखोदेवरा गांव में बसा है 'मिनी मद्रास'

बिहार के नवादा जिले में एक अनोखा गांव है, जिसे लोग 'मिनी मद्रास' भी कहते हैं। जी हां, यह सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यह सौ फीसदी सही है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि कौआकोल प्रखंड...

अनोखा गांव: लोकनायक जेपी की कर्मभूमि सोखोदेवरा गांव में बसा है 'मिनी मद्रास'
नवादा। सुधीर कुमार गुप्ताWed, 22 Jan 2020 06:18 PM
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बिहार के नवादा जिले में एक अनोखा गांव है, जिसे लोग 'मिनी मद्रास' भी कहते हैं। जी हां, यह सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यह सौ फीसदी सही है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि कौआकोल प्रखंड के सोखोदेवरा गांव के करीब 500 लोग चेन्नई (मद्रास) में नौकरी करते हैं। इनमें कई कुक हैं तो कोई अपना व्यवसाय करता है। यहीं नहीं कुछ लोगों ने तो वहां अपना होटल भी खोल रखा है। इनकी संख्या सबसे ज्यादा चेन्नई के टीनगर में है।

जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर कौआकोल प्रखंड का सोखोदेवरा गांव है, जहां 1954 में जयप्रकाश नारायण ने आश्रम की स्थापना की थी। इस समय गांव की आबादी करीब पांच हजार है। गांव की बदहाल स्थिति और रोजगार नहीं मिलने के कारण करीब 30 साल पहले ईश्वरी सिंह सबसे पहले मद्रास (अब चेन्नई) गए। शुरू में थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन बाद में उन्हें एक होटल में खाना बनाने का काम मिल गया। उन्होंने लगातार मेहनत की और आज स्थिति यह है कि उन्होंने वहां अपना खुद का होटल खोल लिया है। इसके बाद गांव के युवाओं की तकदीर बदली और आज करीब पांच सौ लोग वहां जगह-जगह काम कर रहे हैं।

काम करने वाले नामों की है लंबी फेहरिस्त

सोखोदेवरा गांव के पिंकू सिंह वहां पांच साल से होटल में काम करते हैं। इसी तरह संतोष सिंह दस साल से कुक, लल्लन सिंह दस साल से होटल में काम करते हैं। इसके अलावा 15 साल से अमित सिंह कुक, अरविंद सिंह होटल में काम, उपेंद्र सिंह, श्रवण सिंह, शीतल सिंह, छोटे शर्मा, भाई संजय राउत व अरविंद राउत, पिता-पुत्र नारायण सिंह व सुधीर सिंह, पिता-पुत्र अर्जुन शर्मा-लल्लू शर्मा, संदीप कुमार, धमेंद्र सिंह आदि लोग विभिन्न नौकरी व व्यवसाय करते हैं। इनके अलावा राजधानी दिल्ली और कोलकाता में भी गांव के करीब 300 लोग रहते हैं। वहां पर कोई लोहे का कारोबार करता है तो कोई स्कूल चलाता है। दिल्ली में समरपीत सिंह की खुद की लोहे और कोलकाता में सीताराम सिंह की कपड़े की फैक्ट्री है।

ईश्वरी सिंह थे गांव के गाड फादर

गांव के लोगों ने बताया कि 30 साल पहले गांव के ईश्वरी सिंह सबसे पहले मद्रास गए थे। वहां उन्होंने कभी रेस्टोरेंट में तो कभी होटल में कुक का काम किया। अंत में उन्होंने मिठाई की दुकान पर काम करना शुरू किया। कुछ महीने काम करने के बाद उन्होंने वहां पर अपना खुद का होटल खोल लिया। काम जमने के बाद उन्होंने धीरे-धीरे गांव के लोगों को वहां पर बुलाना शुरू कर दिया। वह अपने दोनों बेटों संतोष व लल्लन को भी वहां ले गए। आज स्थिति यह है कि गांव के करीब 500 लोग वहां पर रोजी-रोटी के लिए काम कर रहे हैं। जयपाल सिंह ने खुद का अपना होटल खोल लिया है। यहीं कारण है कि गांव के लोग आज भी ईश्वरी को अपना गॉड फादर मानते हैं।

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