पीके व पवन को निकालना बेहतर कदम : भाजपा
प्रशांत किशोर (पीके) और पवन वर्मा को जदयू से निकाले जाने को बिहार भाजपा ने बेहतर कदम बताया है। प्रदेश प्रवक्ता डॉ निखिल आनंद ने कहा कि अपनी ही पार्टी अध्यक्ष पर सवाल उठाने वाले बड़बोले इन दोनों नेताओं...
प्रशांत किशोर (पीके) और पवन वर्मा को जदयू से निकाले जाने को बिहार भाजपा ने बेहतर कदम बताया है। प्रदेश प्रवक्ता डॉ निखिल आनंद ने कहा कि अपनी ही पार्टी अध्यक्ष पर सवाल उठाने वाले बड़बोले इन दोनों नेताओं को जदयू ने बाहर निकाल कर अच्छा किया है। बुधवार को जारी बयान में उन्होंने पीके पर झूठ और प्रोपोगंडा फैलाने का आरोप लगाया। सीएम ने सार्वजनिक तौर पर पहले भी कहा था कि भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कहने पर पीके को जदयू में लाया तो उस समय उन्होंने गलत क्यों नहीं कहा।
जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे प्रशांत किशोर (पीके) और पूर्व सांसद पवन वर्मा बीते 50 दिनों से रह-रह कर अपने ही पार्टी नेतृत्व को कटघड़े में खड़ा कर रहे थे। पार्टी के निर्णय के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। इनके विरोध का मुद्दा था सीएए, एनआरसी और एनपीआर। हालांकि इन तीनों विषयों पर मुख्यमंत्री और जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने अपना विचार स्पष्ट रूप से रख दिया था। इसके बाद भी दोनों नेताओं के विरोध का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था।
नौ दिसंबर को उठाए थे सवाल
सबसे पहले नौ दिसंबर, 2019 को पीके ने ट्वीट कर पार्टी के निर्णय पर दुख जताया था और कहा था कि कैब का समर्थन पार्टी के संविधान के खिलाफ है। दो दिनों बाद 11 दिसंबर को फिर उन्होंने ट्वीट किया कि कैब का समर्थन करने के पहले पार्टी नेतृत्व को उनलोगों के बारे में सोचना चाहिए था, जिन्होंने 2015 के चुनाव में उन्हें समर्थन दिया था।
14 दिसंबर को हुई ती नीतीश से मुलाकात
14 दिसंबर को पीके पटना आए और नीतीश कुमार से एक अणे मार्ग में मुलाकात की। मुलाकात के बाद पीके ने मीडिया से कहा था कि हमने अपना इस्तीफा सौंपा था, जिसे पार्टी अध्यक्ष ने अस्वीकार कर दिया।
पवन ने भी कहा था, कैब देशहित में नहीं
पवन वर्मा भी जदयू द्वारा संसद में कैब को समर्थन दिये जाने पर कड़ा एतराज जताया था। उन्होंने कहा 10 दिसंबर को कहा था कि कैब का समर्थन ना ही देशहित में है बल्कि यह जदयू के संविधान के खिलाफ है। इसके बाद उन्होंने नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इसे सार्वजनिक किया था।
नीतीश ने दिए सभी सवालों के जवाब
उधर, नीतीश कुमार ने उक्त मुद्दों को लेकर सभी सवालों के जवाब समय-समय पर दिए। 13 जनवरी को विधानसभा के विशेष सत्र में मुख्यमंत्री ने साफ किया कि एनआरसी बिहार में लागू होने का सवाल ही नहीं होता है। इस पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बात साफ कर दी है। एनआरसी की बात सिर्फ असम के संदर्भ में कही गई थी, जब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। देश के अन्य हिस्से में एनआरसी पर कोई बात नहीं हुई है। इसके पहले भी मुख्यमंत्री ने कहा था कि एनआरसी बिहार में लागू नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना चाहिए
28 जनवरी को पार्टी की बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि सीएए देश में लागू है। इस पर कोई विवाद है तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधीन है। जो भी इस पर प्रश्न उठा रहे हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इस पर इंतजार करना चाहिए। इससे पहले 13 जनवरी को मुख्यमंत्री ने एनपीआर समेत अन्य ऐसे मुद्दों पर कहा था कि 19 जनवरी को मानव श्रृंखला के बाद इन पर बात करेंगे। एनपीआर पर विस्तृत जानकारी देंगे। 28 को पार्टी की बैठक में उन्होंने एनपीआर पर कहा कि इसमें कुछ नये प्रावधान लागू किये गए हैं, जिस पर मुझे भी आपत्ति है। एनपीआर को पुराने नियम के साथ ही लागू किया जाना चाहिए।