जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हत्याकांड में सजा बरकरार
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर सहित भाकपा माले के जिला कमेटी सदस्य श्याम नारायण यादव हत्याकांड मामले में पटना हाईकोर्ट ने सभी अभियुक्तों की उमकैद की सजा बरकरार रखी तथा अपील खारिज कर दी।...
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर सहित भाकपा माले के जिला कमेटी सदस्य श्याम नारायण यादव हत्याकांड मामले में पटना हाईकोर्ट ने सभी अभियुक्तों की उमकैद की सजा बरकरार रखी तथा अपील खारिज कर दी। अदालत ने अपने 56 पेज के फैसले में सीबीआई कोर्ट के फैसले पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।
सीबीआई कोर्ट ने नौ नवम्बर, 2012 को सभी अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा दी थी। साथ ही अर्थ दंड लगाया था। निचली अदालत के फैसले को आपराधिक अपील दायर कर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति आदित्य कुमार त्रिवेदी तथा न्यायमूर्ति विनोद कुमार सिन्हा की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई कर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। शुक्रवार को न्यायमूर्ति विनोद कुमार सिन्हा ने सभी आपराधिक अपील को खारिज करने का आदेश दिया, जिस पर न्यायमूर्ति आदित्य कुमार त्रिवेदी ने अपनी सहमति दी।
31 मार्च, 1997 को हुई थी बीच चौराहे पर हत्या
भाकपा माले ने दो अप्रैल, 1997 को बिहार बंद का आयोजन कराया था। जिसे सफल बनाने के लिए 31 मार्च, 1997 को माले कार्यकर्ता दोपहर तीन बजे टेम्पो से प्रचार करते सीवान के जेपी चौक के पास पहुंचे तो हाथों में रिवाल्वर लिए ध्रुव कुमार जायसवाल उर्फ ध्रुव साह, मुन्ना खान, रेयाजुद्दीन खान तथा स्टेनगन लिए मंटू खान ने इन्हें रोका और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। फायरिंग में चंद्रशेखर प्रसाद मौके पर ही मारे गए, जबकि श्याम नारायण यादव और भृगुशन पटेल घायल हो गए। वहीं रामदेव राम टेम्पो से कूद जान बचाने का प्रयास किया। घटना के बाद मृत चंद्रशेखर प्रसाद तथा घायल श्याम नारायण यादव को उसी टेम्पो से सदर अस्पताल लाया गया। इलाज के दौरान श्यामनारायण ने सत्यदेव राम के समक्ष अभियुक्तों का नाम लिया। हालांकि बाद में श्याम नारायण की भी मौत हो गई।
वहीं भृगुशन पटेल घटना की जानकारी देने के लिए पार्टी ऑफिस चले गए। इस मामले में रमेश सिंह कुशवाहा के बयान पर टाउन थाना कांड संख्या 54/ 97 दर्ज किया गया। जेएनयू छात्र संघ के नेता की हत्या के बाद छात्रों के भारी दबाव पर राज्य सरकार ने 31 जुलाई, 1997 को अनुसंधान का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई ने अपने अनुसंधान के बाद 30 मई, 1998 को अपना आरोप पत्र दायर किया। ट्रायल के दौरान सीबीआई ने 20 गवाह तो बचाव पक्ष ने 10 गवाह पेश किये। सीबीआई कोर्ट के एडीजे चौधरी बीके राय ने इन चारों अभियुक्तों को नौ नवम्बर, 2012 को उम्रकैद की सजा सुनाई तथा अर्थ दंड लगाया।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान रखा गया पक्ष
सीबीआई कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में अपील दायर कर चुनौती दी गई। आवेदकों के वकील ने दर्ज प्राथमिकी पर सवाल खड़ा करते हुए कोर्ट को बताया कि ट्रायल के दौरान प्राथमिकी दर्ज करने वाले रमेश सिंह कुशवाहा अपने बयान से मुकर गए। ऐसे में दर्ज प्राथमिकी पर विश्वास करना सही नहीं होगा। वहीं सीबीआई के वकील ने कोर्ट को बताया कि ट्रायल के दौरान सूचक मुकर गए, इसका यह मतलब नहीं है कि घटना असत्य है। उन्होंने कई दूसरे गवाहों की गवाही की ओर कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि दर्ज प्राथमिकी पर सवाल उठाना सही नहीं है। जबकि दर्ज प्राथमिकी पर किये गये अपने हस्ताक्षर की पहचान रमेश कुशवाहा ने की है। टाउन थाने के एएसआई ने अपने बयान में कहा है कि फायरिंग की आवाज सुनी और जब घटनास्थल पर पहुंचे तो देखा कि अभियुक्त रजिस्ट्री ऑफिस की ओर भाग रहे हैं। सभी पक्षों की ओर से दलील को सुनने के बाद कोर्ट ने चारों अपील की खारिज कर दी।