मीठे के शौकीन वाजपेयी जी बोले, मैं तो चपाती खाऊंगा, इमरजेंसी के दौरान सच्चिदानंद प्रसाद के घर में ठहरे थे अटल जी
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं। लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं।। अटल बिहार वाजपेयी हमेशा से ऐसे ही थे। मीठे के शौकीन इतने कि जब...
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं। लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं।। अटल बिहार वाजपेयी हमेशा से ऐसे ही थे। मीठे के शौकीन इतने कि जब इमरजेंसी के दौरान यहां छुपते हुए आए तब रात में उनके लिए मिठाई मंगवाकर मैंने रखी थी। चावल पसंद नहीं था उन्हें।
कहते थे मैं तो चपाती खाऊंगा। यही वह कमरा है जहां उन्होंने एक रात गुजारी थी। अगले दिन भेष बदल कर यहां से चले गए। आज फिर वो चले गए...मगर ना तब वो हमारे दिलों से निकल पाए थे और ना अब..। भर्राए गले से यह कहते हुए प्रफुल्ला देवी फफक पड़ती हैं।
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गरीबस्थान मंदिर के ठीक सामने सच्चिदानंद प्रसाद का घर हैं। श्री प्रसाद अब नहीं रहे मगर उनकी धर्मपत्नी और तब जनसंघ की बिहार प्रांत की महिला संयोजिका के रूप में कार्यरत प्रफुल्ला देवी के पास अमूल्य यादों का खजाना आज भी धरोहर के रूप में है। अटल जी से इस घर का लगाव कितना गहरा था, इसका प्रमाण वह कमरा है जो आज भी खाली रहता है। इस मकान में अकेली रहती हैं प्रफुल्ला देवी। उनकी नम आंखें और भर्राई अवाज ना जाने कितनी बार आंसूओं के सौलाब में डूबी। खुद को किसी तरह संभालते हुए प्रफुल्ला देवी कहती हैं कि जिस कमरे में अटल जी ठहरे थे, वह आज भी खाली रहता है। इमरजेंसी से पहले भी इस घर में वे दो बार आ चुके हैं। इमरजेंसी के समय जब वो इस घर में आए थे तो कई जगह गुप्त बैठक हो रही थी मगर उनके जीने का अंदाज वही था। उनसे हमारे पूरे परिवार की नजदीकी थी। आरएसएस के साथ जनसंघ की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह है यह मकान।
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डेढ़ घंटे तक बोलते ही रहे, मंत्रमुग्ध सी सुनती रहीं महिलाएं
प्रफुल्ला देवी बताती हैं कि यह साल 57 की बात हैं। राणी सती मंदिर में आकर वाजपेयी जी ठहरे थे। महिलाओं का सम्मेलन टाउन हॉल में होना था जिसमें राजमाता को आना था। किसी कारणवश वो नहीं आ पाई। मेरे पति आरएसएस के प्रचारक थे और मैं जनसंघ की संयोजिका। मैं उनके पास गई और कहा कि आपको मेरे साथ महिलाओं के सम्मेलन में चलना होगा। मेरे अनुरोध पर वे आए और डेढ़ घंटे तक वे अनवरत बोलते रहे और महिलाएं मंत्रमुग्ध सी सुनती रही। उस समय जो उनसे नजदीकी हुई, वह हमेशा रही।
मैं तो पूरा बिहारी अटल हूं...
वो सह्दय थे। वह दिलों पर यूं ही नहीं राज करते थे। एक बार किसी ने मुझे बिहारी होने का तंज दिया। अटल जी वहीं थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि भईया मैं तो पूरा बिहारी अटल हूं। अटल बिहारी। अब तो उन्हीं की कविता याद आती है कि क्या खोया, क्या पाया जग में, मिलते और बिछुड़ते मग में। मुझे किसी से नहीं शिकायत, यद्यपि छला गया पग-पग में। एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें।।