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आस्था: आंखों में आंसू भर बोले -भवसागर में हूं मां, मुझे तुम उबार लेना...

आंखों से झर- झरकर गिरते आंसू, कंपकंपाते होंठ, मां के मोहिनी रूप की ओर अपलक अश्रुपूर्ण दृष्टि और संकट में फंसे पटना के लाखों लोगों को उबारने की मन्नतें। राजधानी के अधिकतर पूजा पंडालों का नजारा कुछ ऐसा...

आस्था: आंखों में आंसू भर बोले -भवसागर में हूं मां, मुझे तुम उबार लेना...
पटना हिन्दुस्तान टीमSun, 06 Oct 2019 01:11 PM
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आंखों से झर- झरकर गिरते आंसू, कंपकंपाते होंठ, मां के मोहिनी रूप की ओर अपलक अश्रुपूर्ण दृष्टि और संकट में फंसे पटना के लाखों लोगों को उबारने की मन्नतें। राजधानी के अधिकतर पूजा पंडालों का नजारा कुछ ऐसा ही था। पट खुलते ही भक्तों का लालायित समूह मां के दिव्य रूप के दर्शन को पूजा पंडालों की ओर उमड़ पड़ा। लाउड स्पीकर पर बज रहे मां की महिमा के गीतों के बीच मां के दिव्य दर्शन में लगे दर्जनों भक्तों की आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी। होंठों पर आराधना के गीत थे। ममतामयी मां से आशीष के लिए भक्त पुकार कर रहे थे- भवसागर में हूं मां, मुझे तुम उबार लेना..। 

बेटे बेटियों सहित परिजनों के लिए आंचल की झोली फैलाकर अधिकतर माएं कह रहीं थीं- तू सबकी माता है, भाग्य विधाता है.. तू ही जगराता है, बस तुझसे नाता है। बेटे भी मां को  मनाने में लगे थे -कुपुत्रों जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति (पूत कपूत हो जाता है लेकिन मां कभी कुमाता नहीं होतीं)..। इधर भक्तों के भावपूर्ण रोली और चंदन के तिलक से मां का स्वरूप निखरता जा रहा था और कपूर मिले हवन से वातावरण देर रात तक सुवासित होता रहा। 

मां को विशेष हवन की तैयारी 
बेली रोड , राजा बाजार, आशियाना नगर , जगदेव पथ और खाजपुरा में मां की भक्ति का उल्लास चरम पर हैं। आने जाने वाले भक्त बार-बार इस बात का जिक्र करते रहे कि जब पूरा पटना जलजमाव से त्राहिमाम कर रहा था बेली रोड की ओर मां के प्रताप से बेटे सकुशल रहें। इलाके की सकुशलता के लिए पूजा पंडालों में नवमी के दिन भक्तों ने विशेष हवन की तैयारी कर रखी है। साथ ही मां से दुआओं में बार-बार भक्त यह प्रार्थना कर रहे थे कि जल्द से जल्द भवसागर में फंसे पटना के लोगों को वे उबार दें।

पंडालों की ओर बरबस खिंचे आ रहे श्रद्धालु
पिछले दस दिनों से जलजमाव की त्रासदी से पीड़ित लोग भी धीरे-धीरे उत्सवी माहौल में ढलने लगे हैं। सबसे ज्यादा रौनक बेली रोड की ओर सड़कों पर है। शाम ढलते ही नए कपड़े पहनकर हर उम्र और वय के लोग इस ओर के पूजा पंडालों में निकल पड़े। शाम ढलने के साथ ही लोगों का उत्साह बढ़ता गया। 

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