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कोरोना लॉकडाउन पलायन: सूरत से पटना तक शौचालय में लगे नल का पानी पीकर बुझाई प्यास

कोई मां बाप नहीं चाहता कि उसके जीते जी बच्चों को कोई तकलीफ हो, लेकिन जब बात जान पर आ जाती है तो आंख बंदकर सब कुछ करना पड़ता है। बच्चों की जान बचाने के लिए सुपौल के एक मां-बाप को जो करना पड़ा है वह...

कोरोना लॉकडाउन पलायन: सूरत से पटना तक शौचालय में लगे नल का पानी पीकर बुझाई प्यास
पटना। मनीष मिश्राMon, 25 May 2020 01:03 PM
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कोई मां बाप नहीं चाहता कि उसके जीते जी बच्चों को कोई तकलीफ हो, लेकिन जब बात जान पर आ जाती है तो आंख बंदकर सब कुछ करना पड़ता है। बच्चों की जान बचाने के लिए सुपौल के एक मां-बाप को जो करना पड़ा है वह जानकर हर कोई हैरान हो जाएगा। प्यास से सूख रहे हलक को तर करने के लिए इस मां-बाप ने बच्चों को शौचालय का गंदा पानी पिलाया। वह सूरत से पटना तक शौचालय का गंदा, पीला पानी पिलाते हुए पटना आए। जेब में एक भी रुपया नहीं था कि वह पानी का बोतल खरीद सकें। पटना में दो पुलिस के जवानों को जब पीड़ा सुनाई तो उनका कलेजा पिघल गया। उन्होंने दानापुर स्टेशन पर न सिर्फ खाने पीने का सामान दिया बल्कि नगद रुपए भी दिए।coronavirus lockdown mass exodus

कभी नहीं भूलेगा कोरोना का काल
मोहम्मद सलाउद्दीन का कहना है कि उसकी पत्नी और तीन बच्चों की हालत खराब है। घर में दाने-दाने को मोहताज होने के बाद वह जब ट्रेन चली तो निकल लिए। सूरत से लेकर पटना तक कोरोना काल में उन्हें दुश्वारियां ही मिली हैं। पहले तो सूरत में कई दिनों तक वह भूखे पेट रात बिताए। इसके बाद वह ट्रेन से जब निकले र्तो ंजदगी का सबसे बुरा दिन देखना पड़ा। सलाउद्दीन का कहना है कि सूरत से ट्रेन चली तो बोगी में बहुत भीड़ थी। एक दम मारा मारी की स्थिति थी। छोटे बच्चों को लेकर संक्रमण के इस काल में घर तक जाना बड़ी चुनौती थी। भीड़ के कारण डर लग रहा था कि बच्चे कैसे संक्रमण से बच पाएंगे। ट्रेन में भी न तो खाना की व्यवस्था थी और न ही पानी की। हालात ऐसे थे कि पूछिए मत।coronavirus lockdown mass exodus

आंखों से बह रहा था आंसू
सुपौल के रहने वाले मोहम्मद सलाउद्दीन सूरत में साड़ी की फैक्ट्री में काम करते हैं। वह परिवार के साथ वहीं रहते हैं। गांव के ही दो चार और परिवार साथ में रहता है और साड़ी की कंपनी में काम करता है। होली की छुट्टी में वह सभी घर आए थे और फिर वापस काम पर सूरत चले गए। काम शुरु ही हुआ था कि लॉकडाउन हो गया और वह फंस गए। लॉकडाउन के दौरान पूरा पैसा खर्च हो गया। पैसा खर्च होने के बाद पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया।

छीना झपटी में गिर जाता था पानी
सलाउद्दीन का कहना की रास्ते में अगर पानी और खाने का सामान दिया जाता था तो वह छीना झपटी में ही बर्बाद हो जाता था। अगर दस बोतल पानी आता था तो पचास लोग उसपर टूट पड़ते थे। ऐसे में पानी का कभी ढक्कन खुल जाता था तो कभी बोतल ही टूट जाती थी। सलाउद्दीन का कहना है कि रास्ते में उनका मोबाइल भी चोरी हो गया। मोबाइल चोरी होने से वह फंस गया इस कारण से वह पूरी तरह से परेशान हो गया। उनके साथ आए लोगों का कहना है कि यह यात्रा कभी नहीं भूलेगी। बच्चों की चीख पुकार और शौचालय का पानी पिलाना खतरनाक है। बच्चों के शरीर पर कपड़ा तक नहीं डाल पा रहे हैं क्योंकि गर्मी के कारण उनका पूरा शरीर झुलस गया है। इसके बाद पटना आकर भी उन्हें काफी परेशान होना पड़ा। उनका कहना है कि जांच पड़ताल तो महज खानापूर्ति रहीं और घर भेजने के लिए साधन की भी कोई व्यवस्था नहीं दिख रही है।

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