2024 के लिए बीजेपी की बड़ी तैयारी, महागठबंधन को पटखनी देने का बनाया महाप्लान
दरभंगा में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में 2024 की तैयारी को लेकर खाका तैयार किया गया है। जिसमें कई मुद्दों पर बीजेपी का फोकस रहेगा। जिसमें गरीब, किसान,शिक्षा व्यवस्था जैसे मामले शामिल हैं।
रविवार को दरभंगा में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में इस बात का संकेत दिया गया कि किसानों, गरीबों को लाभ पहुंचाने की योजनाओं में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, शिक्षा की खराब स्थिति और बढ़ते अपराध के ग्राफ पर फोकस के साथ बीजेपी बिहार के लिए बड़ी तैयारी कर रही है। पार्टी के राजनीतिक प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया कि राजनीतिक अस्थिरता, असैद्धांतिक गठबंधन और जंगल राज का डर कैसे राज्य की प्रगति में एक बड़ी बाधा बन गया है। जो विश्व स्तर पर भारत की सकारात्मक धारणा के विपरीत है।
महागठबंधन सरकार के गैर-जिम्मेदाराना रवैये के कारण बिहार जैसे कृषि राज्य में श्रम शक्ति और छोटे और सीमांत किसानों की स्थिति खराब हो गई है। किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिलना चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए। कि किसानों को लागत पर कुछ लाभ मिले। लेकिन बिहार में किसानों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। अधिग्रहण के बाद उन्हें अपनी जमीन का सही मुआवजा भी नहीं मिल रहा है। बक्सर में किसान आंदोलन के दौरान इसका नजारा देखने को मिला। यह ऐसे समय में दुर्भाग्यपूर्ण है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई पहलों के जरिए किसानों की आय दोगुनी करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।
किसान विरोधी नीति से बढ़ा पलायन- बीजेपी
बीजेपी के प्रस्ताव में कहा गया है कि सिंचाई विभाग पिछले 32 वर्षों में जदयू और राजद के पास रहा है, लेकिन अदूरदर्शी दृष्टि के कारण सिंचाई की गंभीर समस्या के स्थायी समाधान के लिए कोई नीति या नई नहर परियोजना नहीं है. “केंद्र यूरिया केवल 275 रुपये (1900 रुपये प्रति बैग सब्सिडी के साथ) पर उपलब्ध करा रहा है, लेकिन महागठबंधन सरकार के भ्रष्टाचार ने किसानों को लाभ से वंचित कर दिया है। गरीबों को मुफ्त राशन वितरण और धान की खरीद में भी अनियमितताएं सामने आई हैं।
केंद्र किसानों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है और शाहाबाद क्षेत्र में केंद्र की पहल पर एशियाई विकास बैंक द्वारा 3272 करोड़ रुपये की सोन नहर पक्की परियोजना को मंजूरी दी गई है। बिहार सरकार ने किसान सम्मान निधि से वंचित हो सकने वाले 26 लाख किसानों का केवाईसी भी पूरा नहीं किया है और किसानों के हित के लिए केंद्र और राज्य की योजनाओं में भी गंभीर अनियमितताएं सामने आ रही हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की किसान विरोधी नीति और सरकार की मानसिकता और अक्षमता के कारण राज्य से मजबूरन पलायन करना पड़ा। केंद्रीय योजनाओं के माध्यम से किसानों तक लाभ पहुंचाने के पक्ष में नहीं थे, राज्य सराकर बाढ़ के वार्षिक संकट का समाधान खोजने में असमर्थ है, जो एक बड़े हिस्से को प्रभावित करता है।
निचले स्तर पर पहुंची बिहार की शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा का क्षेत्र जो जेडीयू और आरजेडी के पास रहा है, लेकिन राज्य में अपनी गिरावट पर पहुंच गया है। देर से शैक्षणिक सत्र, एल शिक्षकों की कमी और स्कूलों की खराब स्थिति ने छात्रों को कड़ी टक्कर दी है। शिक्षा के प्रति उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दो दशकों में राज्य ने पुस्तकें भी प्रकाशित नहीं की हैं। हालांकि राज्य में कई केंद्रीय संस्थान स्थापित किए गए हैं, बिहार लगातार अधिक केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना में बाधाएं पैदा कर रहा है। बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी), कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी), पुलिस आदि प्रतियोगी परीक्षाओं के संचालन में भ्रष्टाचार के कारण युवाओं में निराशा है। महागठबंधन सरकार एनडीए सरकार के दौरान अधिसूचित भर्तियों का श्रेय लेकर युवाओं को गुमराह करने की कोशिश कर रही है।
दरभंगा एम्स नीतीश सरकार के अड़ियल रवैये से अटका
प्रस्ताव में ये भी बताया गया है कि साल 2015 में स्वीकृत दरभंगा में प्रस्तावित एम्स जमीन की अनुपलब्धता और नीतीश कुमार के अड़ियल रवैये के कारण अटका हुआ है। 2018 में, बिहार में एनडीए सरकार ने दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (डीएमसीएच) की भूमि पर एम्स स्थापित करने का प्रस्ताव भेजा था। और केंद्रीय कैबिनेट ने 2020 में इसके लिए 1264 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। लेकिन काम अभी भी नहीं हो सका। नीतीश कुमार को राजनीति से ऊपर उठकर जनता के लाभ के लिए एम्स निर्माण में तेजी लानी चाहिए, जो इलाज के लिए दूसरे बयानों पर जाने को मजबूर हैं।
तुष्टिकरण की राजनीति कर रही महागठबंधन की सरकार
प्रस्ताव में हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ 'रामचरितमानस' पर विवादास्पद बयान जारी करके, शहरों को कर्बला में बदलने की धमकी देने, अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के तहत भारतीय संस्कृति पर हमला करने की धमकी देकर विभाजनकारी राजनीति को हवा देने के लिए महागठबंधन सरकार को भी दोषी ठहराया गया, जो खतरनाक है। नीतीश कुमार के 2005 में एनडीए सरकार के सीएम बनने के बाद, उन्हें सुशासन के लिए जाना जाता था। क्योंकि लोगों को राजद शासन के जंगल राज से राहत मिली थी। अब जब उन्होंने एक बार फिर पाला बदल लिया है तो शासन दिशाहीन हो गया है और वही नीतीश कुमार को कोसा जा रहा है।
शराबबंदी पर दोहरा मापदंड अपना रही सरकार
इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी मॉड्यूल मिथिलांचल और सीमांचल में सक्रिय हैं, क्योंकि महागठबंधन सरकार निर्णायक कदम उठाने के लिए तैयार नहीं है। प्रदेश के विकास की कीमत पर भी ओछी राजनीति में व्यस्त है। निवेशक बिहार से किनारा कर रहे हैं। प्रशासनिक अराजकता के कारण, शराबबंदी एक घोर विफलता है। और समानांतर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए अवैध शराब हर जगह उपलब्ध है और बार-बार जहरीली त्रासदियों का कारण बनती है। अब प्रदेश में और खतरनाक मादक पदार्थों की तस्करी भी बढ़ गई है। भाजपा पीड़ितों के परिजनों को मुआवजे की मांग करती रही है, लेकिन महागठबंधन सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। नीतीश कुमार का अपनी ही सरकार में रोज अपमान हो रहा है और इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहने के बावजूद उन्हें समाधान यात्रा पर निकलना पड़ रहा है। राज्य भाजपा की सरकार बनाकर इसका समाधान निकालेगा।