Bihar Weather Monsoon: बिहार में झामझम बारिश कब से, क्यों रूठा मानसून? मौसम विभाग ने बताया
जलवायु परिवर्तन के असर से तापमान इन दिनों दो से तीन डिग्री अधिक रह रहा है। जिससे मानसून का चक्र प्रभावित है। बिहार के अलग-अगल भागों में हल्की बारिश स्थानीय वायुमंडलीय कारकों की वजह से हो रही है।
बिहार में निम्न दबाव का क्षेत्र नहीं बनने से विगत एक पखवारे से मानसून की बारिश नहीं हो रही है। प्रतिकूल वायुमंडलीय दशाओं की वजह से बारिश वाले बादल भी नहीं बन पा रहे हैं। पूरब से नमी का प्रसार भी नहीं हो रहा है। फिलहाल मानसूनी रेखा उत्तर-पश्चिम की तरफ खिसक चुकी है। नतीजतन हाल में मानसूनी बारिश होने के आसार भी नहीं है।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के असर से तापमान इन दिनों दो से तीन डिग्री अधिक रह रहा है। जिससे मानसून का चक्र प्रभावित है। फिलहाल बिहार के अलग-अगल भागों में हल्की बारिश स्थानीय वायुमंडलीय कारकों की वजह से हो रही है। खासकर हिमालय के नजदीक वाले बिहार के पश्चिमी चंपारण व इसके आसपास के इलाकों में स्थानीय वायुमंडलीय दशाओं की वजह से छिटपुट बारिश हो रही है। बताते हैं बिहार सहित उत्तर प्रदेश व झारखंड में विगत पांच-सात वर्षों से मानसून की बारिश की प्रकृति भी बदल रही है। अनावृष्टि व अतिवृष्टि के साथ बारिश वितरण की असामनता इस अवधि में बढ़ी है।
जलवायु परिवर्तन व बारिश की अनियमितता पर वैश्विक स्तर पर मौसम वैज्ञानिक अध्ययन व अनुसंधान कर तथ्य जुटा रहे हैं। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के लिए काम कर रहे 21 वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं ने दुबई में पिछले दिनों हुई बारिश के कारणों का अध्ययन कर कई तथ्य जुटाए हैं। तथ्यों का जलवायु परिवर्तन के परिपेक्ष्य में विश्लेषण किया जा रहा है। बिहार में औसत वार्षिक बारिश का रिकार्ड 1000 मिलीमीटर से लेकर 1500 मिलीमीटर तक रहा है। लेकिन,विगत कुछ वर्षों में खासकर पश्चिम -मध्य हिस्से में 30 से 40 प्रतिशत तक की कमी आई है। राज्य में मध्य जून से अगस्त तक बारिश होती रही है। दक्षिण-पश्चिम मानसून का असर सितंबर अंत से लेकर अक्टूबर की शुरुआत तक रहती है।
पांच-सात वर्षों से जुलाई में लगातार कम हो रही बारिश
पिछले पांच-सात वर्षों से जुलाई महीने में औसत से कम बारिश हो रही है। वर्ष 2022 में करीब 20 दिनों तक मानसून निष्क्रिय रहा था। पिछले वर्ष भी राज्य के कई भागों में 50 फीसदी तक कम बारिश हुई थी। एक विश्लेषण के अनुसार जुलाई की औसत बारिश में विगत दस वर्षों में 35 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। 90 के दशक में जुलाई महीने का औसत वर्षापात करीब 425 मिलीमीटर का रिकॉर्ड है।
क्या कहते हैं मौसम वैज्ञानिक?
जलवायु परिवर्तन की वजह से मानसून का पूरा चक्र बिगड़ रहा है। जून-जुलाई का महीना धान की खेती के लिए अहम होता है। इन दो महीनों में बारिश में कमी, असमान वितरण से खेती पर संकट जैसी स्थिति बन रही है। - अब्दुस सत्तार, वरीय मौसम वैज्ञानिक, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि,पूसा