बिहार में फिलहाल पुराने आरक्षण कोटा से ही होगी भर्ती, नीतीश सरकार का हाई कोर्ट में जवाब
एडवोकेट जनरल पीके शाही ने पटना हाई कोर्ट में कहा कि बिहार सरकार फिलहाल पुराने आरक्षण नियम (50 फीसदी) के आधार पर ही मौजूदा भर्ती परीक्षा का रिजल्ट जारी करेगी।
बिहार में 65 फीसदी आरक्षण का मामला अदालत से अटक जाने के बाद मौजूदा भर्ती परीक्षाओं का रिजल्ट पुराने कोटा के आधार पर ही जारी किया जाएगा। इस संबंध में नीतीश सरकार ने पटना हाई कोर्ट में जवाब दिया है। यानी कि बिहार में विभिन्न पदों पर बहाली के लिए परीक्षा आयोजित की जा चुकी है या की जा रही है, उनमें नियुक्ति पुराने 50 फीसदी आरक्षण कोटा के आधार पर ही होगा। यानी कि बढ़े हुए आरक्षण का लाभ फिलहाल अभ्यर्थियों को नहीं मिल पाएगा। क्योंकि नीतीश सरकार द्वारा आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने के फैसले पर पहले पटना हाई कोर्ट ने रोक लगाई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस रोक को जारी रखा। अगली सुनवाई सितंबर में होगी।
एडवोकेट जनरल पीके शाही ने गुरुवार को पटना हाई कोर्ट में राज्यों के आईटीआई में उप प्राचार्य की नियुक्ति के लुए हुए एग्जाम का रिजल्ट पुराने आरक्षण कोटा के आधार पर ही जारी किया जाएगा। इस संबंध में दायर एक रिट याचिका पर अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था। एडवोकेट जनरल के आश्वासन के बाद जस्टिस अंशुमन की बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया। यह नियम नए आरक्षण नियम के आधार पर निकाले गए सभी भर्ती विज्ञापनों पर लागू होगा। हाल ही में शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया था कि बीपीएससी शिक्षक बहाली परीक्षा फेज 3 में भी 50 फीसदी आरक्षण फॉर्मूला के आधार पर ही नियुक्ति की जाएगी।
बीपीएससी शिक्षक बहाली में आरक्षण का पुराना कोटा ही लागू होगा, शिक्षा विभाग का निर्देश
पीके शाही ने एचटी से बातचीत में कहा कि हाई कोर्ट ने उनका जवाब स्वीकार कर लिया है। इसमें कहा गया है कि अभी तक जो भी एग्जाम आयोजित किए जाने हैं, वो अपने तय शेड्यूल के हिसाब से ही पूरे होंगे। हालांकि, उनका रिजल्ट मौजूदा आरक्षण नियमों के आधार पर जारी किया जाएगा, जो कि 50 फीसदी है। अगर सुप्रीम कोर्ट बिहार सरकार के आरक्षण का दायरा बढ़ाने के फैसले को मान्यता देता है, तो इन भर्तियों में नियुक्ति की व्यवस्था 65 फीसदी कोटा के हिसाब से बदल दी जाएगी।
बता दें कि बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसमें बिहार की भर्तियों में एससी, एसटी, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग का आरक्षण का दायरा 50 से बढ़ाकर 65 फीसदी किए जाने के फैसले को गलत करार दिया गया था।