बिहार चुनाव रिजल्ट: राजनीति में नहीं चला गैर राजनीतिक लोगों का सिक्का, टेक्नोक्रेट फेल नेताजी पास

इस बार राजनीति के मैदान में गैर राजनीतिक लोगों का सिक्का नहीं चला। इक्के-दुक्के छोड़ दें तो अधिकांश को मुंह की खानी पड़ी। डॉक्टर, इंजीनियर, रिटायर आईएएस और सैन्य अधिकारियों से लेकर समाजसेवियों तक ने...

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बिहार चुनाव रिजल्ट: राजनीति में नहीं चला गैर राजनीतिक लोगों का सिक्का, टेक्नोक्रेट फेल नेताजी पास
Malay Ojha मुजफ्फरपुर हिन्दुस्तान टीम
Thu, 12 Nov 2020 3:55 PM

इस बार राजनीति के मैदान में गैर राजनीतिक लोगों का सिक्का नहीं चला। इक्के-दुक्के छोड़ दें तो अधिकांश को मुंह की खानी पड़ी। डॉक्टर, इंजीनियर, रिटायर आईएएस और सैन्य अधिकारियों से लेकर समाजसेवियों तक ने भाग्य आजमाये मगर आखिरकार पास नेता जी ही हुए। एक-दो पास भी वही हुए जो राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते थे।

बिहार की राजनीतिक प्रयोगशाला में गैर राजनीतिक लोगों का प्रयोग सफल नहीं हो सका। शुरुआती दौर में लोगों का समर्थन मिला मगर ईवीएम तक जाते-जाते लोगों ने अपनी राय बदल ली। जनता का रिझाने या समझाने में नेताजी उनसे आगे निकल गए। चुनाव से काफी पहले पुष्पम प्रिया ने बिहार में धमाकेदार तरीके से अपनी उपस्थिति दर्शाने में सफल रही थी। पुष्पम ने न केवल नेता बल्कि खुद को बतौर मुख्यमंत्री पेश कर राजनीतिक गलियारों में धमाका कर दिया। हालांकि पुष्पम का संबंध राजनीतिक परिवार से है मगर वे अपनी पहचान खुद से बनाने में सफल रहीं। प्लुरल्स पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव में कूद गई। मगर जनता ने उन्हें नकार दिया। एक भी सीट नहीं आई। पुष्पम खुद मधुबनी और पटना के बांकीपुर सीट से चुनाव हार गई।

सोशल मीडिया पर बेहद चर्चित रहने वाली मुखिया और परिहार से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रही रीतु जायसवाल को भी हार का सामना करना पड़ा। रीतु प्रशासनिक अधिकारी की पत्नी से अधिक समाजसेवी और चर्चित मुखिया के रूप में जानी जाती हैं। दरभंगा के जाले से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ रहे दंत चिकित्सक मशकूर अहमद उस्मानी को भी जनता ने नकार दिया। डॉ. मशकूर कई अन्य कारणों से भी इस चुनाव में चर्चित रहे थे। समस्तीपुर से रिटायर कर्नल राजीव रंजन पहली बार चुनाव मैदान में थे मगर लोगों ने सवीकार नहीं किया। कर्नल रंजन पहले भाजपा में थे। टिकट नहीं मिलने के बाद वे निर्दलीय मैदान में कूद गए थे, हार का सामना करना पड़ा। मधुबनी चर्चित सर्जन डॉ.एपी सिंह भी अपनी लोकप्रियता को भुनाने चुनावी मैदान में कूदे। डॉ.सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े मगर जीत नहीं सके।

मोतिहारी के हरसिद्धि इंजीनियर रमन सिंह रालोसपा के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़े मगर हार गए। नरकटियागंज से सेवानिवृत आईएएस गुलरेज होदा पहली बार चुनावी मैदान में भाग्य आजमाने उतरे थे। मो.होदा जन संघर्ष दल से चुनाव लड़ रहे थे। मगर हार गए। मुजफ्फरपुर के कुढ़नी से प्रसिद्ध समाजसेवी और मनरेगा वॉच के कारण देश भर में चर्चा में आए संजय सहनी निर्दलीय मैदान में थे। उनके प्रचार में देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज सहित देश-विदेश से कई नामी लोग पहुंचे थे मगर जीतने में सफल नहीं रहे। 

मीनापुर से आरटीआई एक्टिविस्ट तमन्ना हाशमी और पुलिस अधिकारी विनय कुमार सिंह पहली बार मैदान में थे मगर हार गए। लोकसभा की तरह इस बार कलाकारों की संख्या कम रही। विनय बिहारी जीतने में सफल रहे। श्री बिहारी कलाकार के साथ ही अब राजनीति के मंजे खिलाड़ी भी हो चुके हैं। वहीं मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े पद पर से आई और पहली बार चुनाव लड़ रही शालिनी मिश्रा जीतने में सफल रही। शालिनी केसरिया से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं थीं। वे मोतिहारी से चार बार सांसद रहे कमला मिश्र मधुकर की बेटी हैं।

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