ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News बिहार सीवानबसंतपुर के 15 से ज्यादा गांवों का मुख्यालय से संपर्क टूटा

बसंतपुर के 15 से ज्यादा गांवों का मुख्यालय से संपर्क टूटा

जिले के बसंतपुर व लकड़ी नबीगंज प्रखंड के कई गांवों में बाढ़ का पानी घुसने व नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी से लोग दहशत में हैं। बसंतपुर प्रखंड के 15 से ज्यादा गांवों का सीधा संपर्क जहां मुख्यालय से टूट...

बसंतपुर के 15 से ज्यादा गांवों का मुख्यालय से संपर्क टूटा
हिन्दुस्तान टीम,सीवानThu, 01 Oct 2020 10:35 PM
ऐप पर पढ़ें

जिले के बसंतपुर व लकड़ी नबीगंज प्रखंड के कई गांवों में बाढ़ का पानी घुसने व नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी से लोग दहशत में हैं। बसंतपुर प्रखंड के 15 से ज्यादा गांवों का सीधा संपर्क जहां मुख्यालय से टूट गया है। वहीं लकड़ी नबीगंज प्रखंड मुख्यालय में चारों तरफ बाढ़ का पानी फैल गया है। कई गांवों के लोग ऊंचे जगहों पर शरण लेने को विवश हैं। बसंतपुर प्रखंड मुख्यालय के पंचायत के अलावा बगल के सरेयां श्रीकांत, बसांव, मोलनापुर सहित अन्य पंचायतों के कई गांव हैं जहां के लोग वैकल्पिक मार्ग तलाश मुख्यालय पहुंच रहे हैं। सरेयां श्रीकांत व बसांव पंचायत के कई गांव के लोग वैसे तो घर से बाहर निकलने में ही परहेज कर रहे हैं। ज्यादा जरूरी होने पर ही वे मुख्य बाजारों का रूख कर रहे हैं। बसंतपुर-मठिया, कन्हौली-विशुनपुरा, बसंतपुर-जानकीनगर समेत कई सड़कों पर बाढ़ का पानी फैलने से लोग मार्ग परिवर्तित कर यात्रा कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें अधिक दूरी तय करनी पड़ रही है। जिससे आने-जाने में अधिक समय भी लग रहा है। इन दोनों प्रखंडों से जुड़ी गोरेयाकोठी की भी यही स्थिति है। गोरेयाकोठी के दर्जन भर पंचायत अब बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। गोरेयाकोठी के जामो बाजार में हर तरफ बाढ़ का पानी ही नजर आ रहा है। वहीं नबीगंज प्रखंड मुख्यालय के अमूमन सभी कार्यालयों में बाढ़ का पानी घुस गया है। बाजार में भी पानी फैला है। इससे लोग कई परेशानियों से जूझ रहे हैं। तीनों ही प्रखंडों में प्रभावित परिवार मवेशियों संग ऊंचे जगहों पर अस्थाई आशियाना बना लिए हैं। इस परिस्थिति में उन्हें अपने पालतू जानवरों के लिए भोजन उपलब्ध कराना एक चुनौती से कम नहीं है।

आचार संहिता ने प्रतिनिधियों के हाथ रोके

विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने व आदर्श आचार संहिता लागू होने से जनप्रतिनिधियों में भी ऊंहापोह की स्थिति है। वे बाढ़ पीड़ितों की मदद कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की जुगत में भी हैं। तो दूसरी तरफ उन्हें इस बात का भी डर है कि कहीं आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर लेने के देने न पड़ जाएं। हालांकि इससे पहले आई बाढ़ में पीड़ितों की मदद के लिए संभावित प्रत्याशियों में मदद के लिए होड़ मची थी। बावजूद आज हालात दूसरे हैं। वहीं बाढ़ पीड़ितों को इस बात का भी मलाल है कि उनकी सुधि तक लेने वाला कोई नहीं है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें