भागवत कथा से राजा परीक्षित को मिली जीवन से मुक्ति
प्रवचन संस्कार के बिना जीवन का नहीं है मूल्य भागवत कथा से होता है मनुष्य का उद्धार आंदर। एक संवाददाता प्रखंड के भवराजपुर स्थित हनुमान मंदिर के प्रांगण में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के...
प्रवचन
संस्कार के बिना जीवन का नहीं है मूल्य
भागवत कथा से होता है मनुष्य का उद्धार
आंदर। एक संवाददाता
प्रखंड के भवराजपुर स्थित हनुमान मंदिर के प्रांगण में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन कथावाचक पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने राजा परीक्षित जन्म, शुकदेव भगवान के आगमन, सृष्टि की उत्पति व शिव पार्वती विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित ने ऋषि श्रृंगी के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया था। ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि ठीक सातवें दिन तक्षक सर्प के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। उसी श्राप के निवारण के लिए वेद व्यास द्वारा रचित भागवत कथा शुकदेव जी ने सुनाई। जिससे उनका उत्थान हो गया। राजा परीक्षित ने सात दिन भागवत कथा सुनकर जिस तरह अपना उद्धार कर लिया। उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को भागवत का महत्व समझना चाहिए। भागवत अमृत रूपी कलश है। जिसका रसपान करके आदमी अपने जीवन को कृतार्थ कर लेता है। ध्रुव चरित्र सृष्टि की रचना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता है। इसलिए इस कलियुग में दया धर्म एवं भगवान के स्मरण से ही मनुष्य मुक्ति पा सकता है। मनुष्य जीवन का महत्व समझते हुए भगवान की भक्ति में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु ने पांचवां अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग बताते हुए कहा कि, यह पवित्र संस्कार है। लेकिन आधुनिक समय में प्राणी संस्कारों से दूर भाग रहा है। जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है, ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए।