सभी घाटों के आसपास कचरे का अंबार, नहीं हो सकी सफाई
सीवान। सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन वास्तविकता यही है कि जिन छठ घाट व तालाबों को पिछले करीब दस से पंद्रह दिनों से लगातार साफ-सफाई कर व्रतियों की सुविधा के लिए तैयार कर रहे थे, प्रसाशन से लेकर...

सीवान। सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन वास्तविकता यही है कि जिन छठ घाट व तालाबों को पिछले करीब दस से पंद्रह दिनों से लगातार साफ-सफाई कर व्रतियों की सुविधा के लिए तैयार कर रहे थे, प्रसाशन से लेकर जनप्रतिनिधि हो या आमजन सबकी नजर इन घाटों पर ही टिकी थी, वह घाट छठ पूजा के समापन के साथ ही फिर से वीरान पड़ गए हैं। दूर-दूर तक फैले छठ घाटों पर अगर कुछ है तो सिर्फ और सिर्फ गंदगी। जिन सिरसोप्ता की सजावट के लिए नगर परिषद से लेकर स्वयंसेवी संस्थाए तक एक्टिव थी, उदीयमान सूर्य को अर्ध्य देने के बाद भीड़ के समाप्त होने के साथ ही उनका भी कही कुछ अतापता नहीं है। घाट से लेकर सिरसोप्ता तक खाने-पीने के पैकेट से लेकर खराब कपड़े, रद्दी कागज,,फूल-माला आदि छठ घाट से लेकर सिरसोप्ता के ऊपर नीचे से लेकर हर तरफ फैले नजर आ रहे हैं। यह नजारा सिर्फ दाहा नदी पुलवा घाट, शिवव्रत साह घाट, श्रीनगर, महादेवा, रामदेव नगर, बिदुरतिहाता, कंधवारा, महादेवा मिशन छठ घाट या पंचमन्दिरा व मोती स्कूल पोखरा तक कि ही नहीं , बल्कि, कमोबेश सभी जगह एक ही तस्वीर देखने को मिली। लिहाजा कह सकते हैं कि, छठ महापर्व संपन्न होते ही फिर से नदी व तालाब बिसरा दिए गए हैं। शहर के दाहा नदी व सरयू नदी व हर तरफ कूड़ा-कचड़ा पसरा रहा। पूजा समाप्त होने के बाद सुबह से शाम हो गई, लेकिन साफ-सफाई के लिये न तो नगर परिषद का कोई सफाई कर्मी दिखा न कोई अन्य ही।
पर्यावरण विशेषज्ञ व डीएवी पीजी कॉलेज के अवकाश प्राप्त प्रो. रविन्द्र पाठक व पर्यावरण पर कार्य करने वाले अशोक गांगुली ने बताया कि जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुये प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धारायों में विसर्जित करना है। जल में विभिन्न प्रकार के हानिकारक पदार्थों के मिलने से जल प्रदूषण होता है।
