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भोजन व बाढ़ राहत के इंतजार में पथरा गईं विस्थापितों की आंखें

बाढ़ राहत सामग्री मिलने के इंतजार में उम्मींद टूट गई है। घर में पानी घुसने के कारण लगभग 45 दिनों से सड़क किनारे तंबू में रह रहे है। इस बीच कई अधिकारी आये और गये। भोजन और बाढ़ राहत देने का आश्वासन भी...

भोजन व बाढ़ राहत के इंतजार में पथरा गईं विस्थापितों की आंखें
हिन्दुस्तान टीम,सीतामढ़ीThu, 13 Aug 2020 06:53 PM
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बाढ़ राहत सामग्री मिलने के इंतजार में उम्मींद टूट गई है। घर में पानी घुसने के कारण लगभग 45 दिनों से सड़क किनारे तंबू में रह रहे है। इस बीच कई अधिकारी आये और गये। भोजन और बाढ़ राहत देने का आश्वासन भी दिए। लेकिन आज तक न तो दो वक्त का भोजन मिला और न बाढ़ राहत सामग्री। ये दर्द भरी दास्तान रून्नीसैदपुर स्थित एनएच-77 पर शरण लिए बाढ़ से विस्थापित लोगों की है। जिनकी आंखे किसी मददगार की राह देखते-देखते पथरा गईं है। लेकिन कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पायी है। सड़क किनारे शरण लिए लगभग दो सौ परिवार के समक्ष अभी भी खाने को लाले पड़े है। मंगलवार की दोपहर दो बजे कड़ी धूप में कपड़ा साफ कर रही सुनीता देवी बताती है कि ‘कहे के तअ सब कहे आपन, आपन कहावे वाला केहुना...। सड़क किनारे शरण लेने के बाद हाल जानने के लिए कई साहब आये। लेकिन, दो वक्त का भोजन व बाढ़ राहत सामग्री की व्यवस्था नहीं कर पाये। घर में रखे रुपये खर्च हो गए। अब जैसे-तैसे फंकाकशी कर रात-दिन काट रहे हैं। इतने में हाथ में खाना की थाल लिए तंबू से कांती देवी निकली। थोड़ा रोष में बोली महल में रहने वाले हम गरीबों का हाल क्या जाने? हम गरीब लोग एक शाम खाते है तो दूसरी शाम भूखे रहते है। पिछले बार भोजन के लिए राहत कैंप चलाया गया। लेकिन, इस बार कोई व्यवस्था नहीं की गई है। काम भी नहीं मिल रहा है। पानी घटने के बाद भी झोपड़ी में जलजमाव है। पानी सुखने में 15 दिन से उपर समय लगेगा। तब लोग घर लौट पाएंगे। तंबू में अपने पुत्र को पंखा झेल रहे रहे राकेश पासवान बताते है प्रत्येक साल बाढ़ से हमलोगों को विस्थापित होना पड़ता है। जिसका सामाधान नहीं हो पाता हैं। बाढ़ राहत के नाम पर लाखों रुपये खर्च हो रहे है पर हमलोगों को कुछ नहीं मिला ।

साफ-सफाई का अभाव, मास्क भी नहीं लगाते हैं लोग

एनएन-77 किनारे लगभग दो परिवार शरण लिए है। तंबू में बकरी व मवेशी बांध रखे है। उसमें खाना पकाते है। जिससे चारो-तफर गंदगी फैली है। इस कारण संक्रमित महामारी फैलने की आशंका बनी है। सबसे खास बात कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं होने से कोरोना का खतरा है। बाढ़ पीड़ित रमेश मांझी बताते है कि यहां के लोगों में जागरूकता का काफी अभाव हैं। साथ ही रुपये के अभाव में दो वक्त का भोजन मुश्किल है। फिर सेनेटाइजर व साबुन कहां से खरीदे।

एक-दो दिन पहले पदभार ग्रहण किए हैं। बाढ़ से प्रभावित इलाके की जांच कर बाढ़ पीड़ितों को हर संभव सरकारी स्तर पर सहयोग किया जाएगा। कोरोना से बचाव के लिए बाढ़ पीड़ितों के बीच जागरूकता अभियान के साथ मास्क आदि का वितरण किया जाएगा।

- संतोष कुमार सिंह, सीओ, रून्नीसैदपुर

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