Hindi NewsBihar NewsShivanand Tivary remembers 1991 lok sabha elections when Nitish Kumar took Lalu Yadav to meet Dularchand Yadav for vote
दुलारचंद से वोट मांगने लालू को लेकर गए थे नीतीश; शिवानंद को याद आई 1991 की कहानी

दुलारचंद से वोट मांगने लालू को लेकर गए थे नीतीश; शिवानंद को याद आई 1991 की कहानी

संक्षेप: मोकामा में बाहुबली दुलारचंद यादव की हत्या पर राजद नेता शिवानंद तिवारी ने 1991 में वोट के लिए नीतीश कुमार और लालू यादव के दुलारचंद यादव के गांव जाकर उनसे मिलने को याद किया है।

Tue, 4 Nov 2025 02:50 PMRitesh Verma लाइव हिन्दुस्तान
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पटना जिले के मोकामा में चुनाव प्रचार के दौरान जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और जन सुराज पार्टी (जेएसपी) के समर्थकों की झड़प में मोकामा टाल के दबंग नेता दुलारचंद यादव की हत्या के बाद राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने 1991 के उस चुनाव की याद दिलाई है, जब वोट के लिए लालू यादव को साथ लेकर नीतीश कुमार दुलारचंद यादव का समर्थन लेने उनके गांव गए थे। दुलारचंद यादव भले इस चुनाव में जन सुराज के कैंडिडेट पीयूष प्रियदर्शी के साथ घूम रहे थे लेकिन वो राजद के नेता थे और राजद से पीयूष को टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे थे।

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नीतीश कुमार 1991 में बाढ़ लोकसभा सीट से दूसरी बार चुनाव लड़े थे और जीते। नीतीश बाढ़ से लगातार पांच बार सांसद रहे और बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रहे। लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ राजनीति कर चुके शिवानंद तिवारी ने फेसबुक पोस्ट में दुलारचंद यादव को याद किया है। आगे की बात शिवानंद तिवारी के शब्दों में.

“मोकामा सुर्खियों में है। नामी-नामी लोग आमने-सामने हैं। कई क्षेत्रों में उम्मीदवार दर्जनों गाड़ियों का काफिला अपने पीछे लेकर चल रहे हैं। उन गाड़ियों में मारक हथियारों से लैस उनके गुर्गे होते हैं। आज तक बिहार के किसी भी चुनाव में ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिला था। स्वाभाविक है कि ऐसा दृश्य सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों के साथ ज्यादा देखने को मिल रहा है। चुनाव आयोग का तो कहना ही क्या? वह तो सरकार के साथ हमविस्तर है। कल जो वारदात हुई उसमें दुलारचंद यादव मारे गये। उनका फोटो देखा। उनके खास मूंछ के साथ। उस मूंछ के बगैर मैं दुलारचंद की कल्पना नहीं कर सकता था।

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पहली मर्तबा 1991 के लोकसभा चुनाव के समय दुलारचंद को देखा था। नीतीश लोकसभा का अपना दूसरा चुनाव लड़ रहे थे। उन दिनों हम सभी लोग एक साथ थे। मोकामा टाल के इलाके में शायद 'दुलारचंद का प्रभाव था। वहां के तीन-चार बूथ पर वे एकतरफा वोट डलवा देते थे। हमलोग साथ ही बैठे थे। नीतीश ने लालू को कहा कि चलकर दुलारचंद से मिल लिया जाए। उनके प्रभाव का वोट भी सुरक्षित कर लिया जाए।

लालू ने कहा कि क्यों आप दुलारचंद को इतना महत्व दे रहे हैं! लेकिन नीतीश तो अलग मिजाज वाले ठहरे। उन्होंने कहा कि वहां जो तीन-चार बूथ है, उसको भी 'प्लग' कर दिया जाए। नीतीश का इसरार ऐसा था तो तय हो गया कि दुलारचंद के यहां चला जाए. बसनुमा रथ में कारवां निकला. उसमें पत्रकारों की टोली भी शामिल हो गई. कैमरा वाले भी थे. पत्रकारों में अरविंद नारायण दास भी थे. उन्होंने ही आद्री की शुरुआत की थी. कारवां ताड़तर'पहुंचा। हजारों की भीड़ वहां जमा थी।

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दुलारचंद ने सबका सत्कार किया और नीतीश के सिर पर पगड़ी बांधी। लालू के सर पर बांधा ही। फोटो पत्रकारों को अच्छी तस्वीर मिल गई। मुझे याद है कि उसके कुछ ही दिनों बाद गांधी मैदान में पुस्तक मेला लगा था। वहां हिंदुस्तान टाइम्स के स्टाल के सामने नीतीश कुमार को पगड़ी बांधते दुलारचंद की वही बड़ी तस्वीर टंगी थी। अरविंद नारायण दास ने उस प्रकरण पर दिल्ली के अखबार में आलोचनात्मक लेख भी लिखा था। आज उन्हीं दुलारचंद का मृत शरीर मीडिया में देखकर यह घटना याद आ गई।”

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Ritesh Verma

लेखक के बारे में

Ritesh Verma
रीतेश वर्मा लगभग ढाई दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। बिहार में दैनिक जागरण से करियर की शुरुआत करने के बाद दिल्ली-एनसीआर में विराट वैभव, दैनिक भास्कर, आज समाज, बीबीसी हिन्दी, स्टार न्यूज, सहारा समय और इंडिया न्यूज के लिए अलग-अलग भूमिका में काम कर चुके हैं। और पढ़ें
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