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मोदी लहर में पहली बार डेहरी में खिला कमल

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मोदी लहर में पहली बार डेहरी में खिला कमल
हिन्दुस्तान टीम,सासारामThu, 23 May 2019 09:12 PM
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प्रत्याशी चयन में सफल रहा भाजपा का जातीय समीकरण

पहले राजद और अब भाजपा की प्रतिष्ठा को बचाए सत्यनारायण

डेहरी। कमलेश कुमार

लोकसभा में जहां एक ओर देशभर में मोदी लहर ने देश के बड़े बड़े राजनीतिक नेताओं को धूल चटा दिया है। वहीं, आजादी के बाद से अब तक डेहरी विधानसभा क्षेत्र में जीत के लिए बार-बार समीकरण बदलने के बावजूद भाजपा को डेहरी विधानसभा चुनाव में हमेशा असफलता हाथ लगती थी। वर्ष 2019 के डेहरी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रदेश नेताओं द्वारा जातीय समीकरण के तहत सत्यनारायण यादव को प्रत्याशी बनाना कारगर साबित हुआ। आजादी के बाद पहली बार डेहरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का कमल खिला।

सत्यनारायण का राजनीतिक सफर

औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड के मझियांव के निवासी पूर्व मुखिया जगदीश प्रसाद और लखपति देवी के घर में 8 मार्च 1963 के जन्मे सत्यनारायण यादव पढ़ाई-लिखाई के बाद वर्ष 2003 में राजनीतिक रंग में रंगते हुए राष्ट्रीय जनता दल पार्टी में शामिल हुए। ओबरा विधान सभा से राजद कभी जीतने में सफल नहीं हुई थी, इसलिए राजद ने फरवरी 2005 में सत्य नारायण यादव को अपना प्रत्याशी बनाया और 4300 मतों से वे जीतकर विधायक बने। पुनः अक्टूबर 2005 में 8600 मतों से जीतकर विधायक बने। किंतु 2010 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। बागी बनकर वर्ष 2014 में काराकाट लोकसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े। चौथे नंबर पर रहे। उसके बाद सांसद रामकृपाल यादव के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। विधान सभा उपचुनाव घोषणा के बाद प्रत्याशी चयन में एक महीने तक माथापच्ची करने के बाद नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बाद भाजपा ने सत्यनारायण यादव को अपना प्रत्याशी घोषित किया।

जातीय समीकरण का प्रयोग करती रही भाजपा

वर्ष 1990 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने डेहरी विधानसभा में अपना प्रत्याशी खड़ा किया। तब भाजपा नेता विनोद सिंह को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया, किंतु वह 10 हजार मतों से चुनाव हार गए। तब वर्ष 2004 में पार्टी ने गोपाल नारायण सिंह को प्रत्याशी बनाया। जो करीब 13 हजार मतों से चुनाव हारे। इसी बीच वर्ष 2005 में पार्टी ने एक बार फिर राजपूत प्रत्याशी सतेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया और वह तीसरे नंबर पर रहे। फरवरी 2005 में भाजपा ने पहली बार कुशवाहा प्रत्याशी शीला सिंह को चुनाव मैदान में उतारा, किंतु वह तीसरे नंबर तक ही सिमट कर रह गईं। अक्टूबर 2005 के उप चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने राजपूत प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह को चुनाव मैदान में उतारा और वह भी चुनाव हार गए। 2010 में पार्टी ने अवधेश नारायण सिंह को पुनः अपना प्रत्याशी बनाया, जो तीसरे नंबर पर आकर चुनाव हारे। वर्ष 2015 में भाजपा ने अपने सहयोगी रालोसपा के साथ गठबंधन किया और वैश्य समुदाय से आने वाले रिंकू सोनी को प्रत्याशी बनाया और कड़ी टक्कर देते हुए रिंकू सोनी भी करीब 4 हजार मतों से चुनाव हारे। 2019 के उपचुनाव में जातीय समीकरण के तहत पहली बार यादव प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा और आखिरकार माई समीकरण में जबरदस्त सेंध लगाते हुए भाजपा ने सफलता हासिल कर ली।

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