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हम टीका नय लेबै, चल जो नए त खराब बात भ जेतौ

हम टीका नय लेबै, चल जो नए त खराब बात भ जेतौ। टीका लेलकै त फलामा त मरीए गेलै आब हमहू सब मरी जाऊं की। यह नोकझोंक की बात किसी घर के सास-पुतोह एवं गोतनी...

हम टीका नय लेबै, चल जो नए त खराब बात भ जेतौ
हिन्दुस्तान टीम,समस्तीपुरTue, 01 Jun 2021 04:21 AM
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समस्तीपुर। हिन्दुस्तान संवाददाता

हम टीका नय लेबै, चल जो नए त खराब बात भ जेतौ। टीका लेलकै त फलामा त मरीए गेलै आब हमहू सब मरी जाऊं की। यह नोकझोंक की बात किसी घर के सास-पुतोह एवं गोतनी के बीच का हिस्सा नहीं है। बल्कि 45 प्लस आयु वर्ग के लोगों को टीका के प्रचार प्रसार के दौरान की है। एक दो प्रखंड नहीं, कई प्रखंडों के कई गांव में इस तरह की बात सामने आ रही है। इस तरह के बात की कुछ रिकार्डिंग अधिकारियों के मोबाइल पर भी भेजी गयी है। टीका एक्सप्रेस के पहुंचने से पहले आशा, एएनएम व आंगनबाड़ी सेविका अपने-अपने क्षेत्र में लोगों को टीका के लिए प्रेरित करती है। लेकिन अधिकांश गांव में आशा व एएनएम को देखते ही लोग भड़क जाते हैं।

इसमें महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है। जो टीका लेने से परहेज करती है और अपने घर के पुरुषों को भी टीका लेने से मना करती है। एक प्रखंड के किसी गांव का ऑडियो में टीका के लिए प्रेरित करने पहुंची एएनएम व आशा को खूब कोसती है। महिला कहती है कि हम मरबय त मरबय, मुदा सूईया नय लेबै। इस पर आशा कार्यकर्ता कहती है कि नय काकी, ई बात नय छय। टीका से कोनो आदमी मरय छय। मरतय त सबे न मरतय। टीका ठीक छय। अहु ल लिऊ आ चाचा जी के सेहा कहियो। इस पर महिला भड़क जाती है।

स्वास्थ्य कर्मियों एवं आशा कार्यकर्ताओं की मानें तो इस तरह अक्सर गांव में कुछ ना कुछ लोग मिल जाते हैं। जिसके कारण पूरा टोला टीका नहीं लेता है। कई गांव में तो पुरुष भी विरोध करते हैं। जिसके कारण टीका के लिए अन्य लोग भी आगे नहीं आ रहे हैं। कम से कम दस लोगों के पहुंचने पर ही वैक्सीन दिया जा सकता है। एक वाइल में दस लोगों का डोज होता है। इधर, डीआईओ डॉ. सतीश कुमार सिन्हा ने कहा कि हर गांव में हर तरह के लोग होते हैं। प्रेरित करने के दौरान कर्मियों को परेशानी हो रही है। लोग अभी टीका का महत्व नहीं समझ रहे हैं। इस लिए ऐसी परेशानी है। फिर भी गांव-गांव जाकर लोगों को जागरुक कर टीका दिलवाना ही हमारा लक्ष्य है।

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