मशीन के गहनों से व्यापार चौपट कारीगरों का छिन गया रोजगार
समस्तीपुर में सोने-चांदी के गहने बनाने वाले कारीगरों की संख्या एक हजार से अधिक है। आधुनिक मशीनों के कारण इनकी आजीविका पर संकट है। महंगाई और नए डिजाइनों की मांग ने पारंपरिक कारीगरों की मेहनत को...
समस्तीपुर। जिले में सोने-चांदी के गहने बनाने वाले कारीगरों की संख्या एक हजार से अधिक है। बदलते समय के साथ इन कारीगरों को कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। इनका कहना है कि आधुनिक मशीनों से बने गहनों ने व्यवसाय को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है। ऊपर से महंगाई की मार भी परेशानी में डाल रही है। लोग अब शादी-विवाह को छोड़कर जेवर कम बनवाते हैं। गहने की मरम्मत भी लोग पहले की अपेक्षा कम करवाने लगे हैं। कारीगरों ने सरकार से व्यवसाय को फिर से खड़ा करने के लिए पहल करने की मांग की है। मशीन से बने गहनों की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। उपभोक्ता अब हल्के, आकर्षक और विभिन्न डिजाइनों वाले गहनों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो कम समय में और कम लागत में तैयार हो जाते हैं। बड़ी-बड़ी ज्वेलरी कंपनियां मशीन से एक जैसे गहनों की शृंखला बनाकर बाजार में ला रही हैं, जिससे पारंपरिक स्वर्णकारों की हस्तकला की मांग घट रही है। मशीन द्वारा बनाए गए गहने ग्राहक को अधिक ट्रेंडी लगते हैं। वहीं हस्तनिर्मित गहनों को समय ज्यादा लगता है और उनकी लागत भी अधिक होती है। इस कारण छोटे कारीगरों को ऑर्डर नहीं मिलते, जिससे उनकी आजीविका पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
वे प्रतस्पिर्धा में पिछड़ते जा रहे हैं और उन्हें अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ने की नौबत आ रही है। स्वर्णकार कारीगर निशिकांत निर्मल कहते हैं कि पहले स्वर्णकारों के लिए गहनों की मरम्मत एक स्थायी आय का स्रोत था। ग्राहक पुराने गहनों की मरम्मत और पॉलिश कराने के लिए स्वर्णकारों के पास आते थे, लेकिन अब उपभोक्ताओं की सोच बदल गई है। वे पुराने गहनों की मरम्मत कराने की बजाय बेचकर नए और आधुनिक डिजाइन वाले गहने लेना पसंद करते हैं। समर राज कहते हैं कि बाजार में उपलब्ध ब्रांडेड दुकानों द्वारा गहनों की फ्री सर्विस देने की सुविधा ने भी पारंपरिक मरम्मत कार्य की मांग को लगभग खत्म कर दिया है। परिणामस्वरूप स्वर्णकारों के पास मरम्मत का काम नहीं आ रहा और उनकी दैनिक आय प्रभावित हो रही है। अनिल गुप्ता ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में सोने की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इससे
आम उपभोक्ता के लिए सोने के गहने खरीदना कठिन हो गया है। पहले मध्यमवर्गीय परिवार भी कुछ ग्राम सोना खरीद लेता था, लेकिन अब वह केवल देखने या पूछताछ तक सीमित रह गई है।
इससे स्वर्णकारों को मिलने वाले ऑर्डर घट गए हैं। उनकी आमदनी पर नकारात्मक असर पड़ा है। ग्राहक अब कम कीमत वाले विकल्पों जैसे चांदी, कृत्रिम गहने की ओर बढ़ रहे हैं। सोने के गहने की बिक्री घटने से स्वर्णकारों के काम में मंदी आ गई है। उनका काम अब केवल शादी-विवाह या विशेष अवसर तक सीमित है। सोने की महंगाई न सिर्फ ग्राहकों को प्रभावित कर रही है, बल्कि इससे स्वर्णकारों के लिए भी स्टॉक रखना और कार्य करना खर्चीला हो गया है।
कच्चा माल भी हो गया महंगा : स्वर्णकारों को गहनों के निर्माण के लिए केवल सोने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि तांबा, तार, पत्थर, घिसाई सामग्री और अन्य औजारों की भी जरूरत होती है, इन सभी कच्चे माल की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं। छोटे कारीगरों के पास पूंजी की कमी होती है, जिससे वे थोक में सामग्री नहीं खरीद पाते। इसके कारण उनके उत्पादन की लागत अधिक हो जाती है और मुनाफा कम रह जाता है। ग्राहक मोलभाव करते हैं, लेकिन कारीगर चाहकर भी कीमत कम नहीं कर पाते, क्योंकि लागत पहले से ही अधिक है। इसके अलावा महंगाई के कारण वे नए उपकरण नहीं खरीद पा रहे हैं। पुराने औजारों से ही काम चलाना पड़ता है। इससे गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। स्वर्णकारों का व्यवसाय अब पहले जैसा स्थायी और नियमित आय का स्रोत नहीं रह गया है। कभी-कभी पूरे सप्ताह कोई ग्राहक नहीं आता, जिससे उनकी आमदनी प्रभावित होती है। रोजमर्रा की जरूरतें जैसे बच्चों की पढ़ाई, इलाज, भोजन और किराया जैसे खर्चों को पूरा करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है। अनेक स्वर्णकार अब वैकल्पिक रोजगार की तलाश कर रहे हैं ।
विश्वकर्मा योजना के तहत अपना कारोबार शुरू करने की चाहत रखने वाला हुनरमंद कारीगर और शिल्पकार सरकार से 3 लाख रुपये का कर्जा लेने के लिए आवेदन कर सकता है। सरकार कारीगरों और शिल्पकारों को दो बार में पैसा देती है। मंजूरी मिलने के बाद कारोबार शुरू करने के लिए पहले एक लाख रुपये दिए जाते हैं. फिर उस कारोबार को बढ़ाने के लिए सरकार 2 लाख रुपये और देती है। 18 साल से 50 साल के बीच की उम्र का कोई भी कारीगर इसका लाभ ले सकते है। कि कारीगर को इस योजना का लाभ भी दिया गया है। -विवेक कुमार, जिला प्रबंधक, उद्योग विभाग
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