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फॉल आर्मी वर्म के प्रबंधन को लेकर शोध कार्य शुरू.

फॉल आर्मी वर्म का इलाज ढूंढने के लिए राज्य सरकार ने सर्वेक्षण का काम शुरू करवाया है। इसके तहत यह जानने की कोशिश की जा रही है कि सैनिक कीट से कितना नुकसान हो रहा है। किस तरह के बीज और उसके पौधे को...

फॉल आर्मी वर्म के प्रबंधन को लेकर शोध कार्य शुरू.
हिन्दुस्तान टीम,पूर्णियाTue, 31 Dec 2019 12:23 AM
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फॉल आर्मी वर्म का इलाज ढूंढने के लिए राज्य सरकार ने सर्वेक्षण का काम शुरू करवाया है। इसके तहत यह जानने की कोशिश की जा रही है कि सैनिक कीट से कितना नुकसान हो रहा है। किस तरह के बीज और उसके पौधे को नुकसान हो रहा है। किस मौसम में बुआई वाले पौधे में इस कीट का प्रकोप ज्यादा होगा ये जानने की भी कोशिश की जा रही है। ताकि फॉल आर्मी वर्म से बचने का बेहतर तरीका ईजाद किया जाए और किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके।

फॉल आर्मी वर्म से मक्के की खेती को कितना नुकसान हो रहा है, किसी तरह के बीज में ज्यादा वर्म लग रहा है, जिस पक्के में वर्म का प्रकोप है उसकी बुआई कब की गई थी। इस तरह के प्रश्नों को लेकर कृषि वैज्ञानिक खेतों और गांवों में जाकर किसान से बात कर रहे हैं। दरअसल राज्य सरकार ने फॉल आर्मी वर्म के बेहतर प्रबंधन को लेकर एक योजना तैयार किया है। यहां पर सर्वेक्षण की जिम्मेदारी भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज को दिया गया है। इसी योजना के तहत फॉल आर्मी वर्म के प्रधान अन्वेषक सह प्राचार्य डॉ. पारस नाथ अन्य कृषि वैज्ञानिकों के साथ शोघ कार्य कर रहे हैं। खेतों पर सर्वे के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि सैनिक कीट के कारण मक्का की फसलों को 20 से 25 प्रतिशत नुकसान हुआ है। ये भी पाया गया कि जिन किसानों ने अनुशंसित कीटनाशकों विशेषकर थायोमिथोकसाम से बीज उपचार कर बीजाई किया है, उनके खेत में लगे पक्के के पौधे में फाल आर्मी वर्म का प्रकोप कम है। योजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. पारस नाथ ने बताया कि कई तरह के प्रश्नों को लेकर किसानों से मिला जा रहा है। उनसे सवाल किए जा रहे हैं। खेत में जो नुकसान हो रहा है उसका अंदाजा तो स्थल निरीक्षण से लगाया जा रहा है बाकी किसानों से बात कर सर्वे किया जा रहा है। सर्वे का काम पूरा होने के बाद फॉल आर्मी वर्म से बचने का प्लान राज्य स्तर पर तैयार किया जाएगा।

डॉ. पारस नाथ ने बताया कि मक्के की कई प्रजातियां ऐसी हैं जिसमें फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप होता ही नहीं है। किसानों को वैज्ञानिकों की सलाह से उस प्रभेद की खेती करनी चाहिए। इसके साथ उन्होंने कहा कि जब तक सर्वे का पूरा नहीं होता है और कीट से प्रबंधन का दिशा-निर्देश जारी नहीं होता है तब तक किसान इससे बचने के लिए कुछ दवाओं को बदल-बदल कर खेत में इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि स्पाईनोटोरम 11.7 एससी का 0.5 मिली. या थायोमिथोकसाम 12.5 एसपी. प्लस इमामेक्टीन बेंजोएट 3 एसपी का 0.5 मिली या थायोमिथोकसाम 12.5 एसपी प्लस लेम्ड-सायहेलोथ्रीम का 0.25 मिली या क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.5 एससी का 0.4 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार बदल-बदल कर छिड़काव करना चाहिए।

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