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भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय में मखाना उत्पादन

पूर्णिया। कार्यालय प्रतिनिधि भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय में मखाना उत्पादन एवं प्रसंस्करण तकनीक प्रशिक्षण के पांच दिवसीय प्रशिक्षण के दूसरे दिन किसानों को मखाना के औषधीय एवं पोषण गुणों की...

भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय में मखाना उत्पादन
हिन्दुस्तान टीम,पूर्णियाMon, 18 Jun 2018 12:26 AM
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पूर्णिया। कार्यालय प्रतिनिधि भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय में मखाना उत्पादन एवं प्रसंस्करण तकनीक प्रशिक्षण के पांच दिवसीय प्रशिक्षण के दूसरे दिन किसानों को मखाना के औषधीय एवं पोषण गुणों की जानकारी के साथ-साथ मछली पालन की विधि को बारीकी से समझाया गया। दरभंगा के एमआरएम कॉलेज के प्राचार्य डा. विद्यानाथ झा ने किसानों को जानकारी देते हुए कहा कि विदेशों में मखाना के बीज के बीजावरण से मधुमेह रोग के लिए औषधि बनाई जा रही है, जबकि यहां उसका उपयोग लावा बनाने के समय इंधन के रूप में किया जाता है। उन्होंने मणिपुर के तर्ज पर मखाने की पत्तियां, डंठल एवं फल के छिलकों के प्रयोग करने की अवश्यकता बतायी। उन्होंने कहा कि बिहार मे केवल इसके लावे का उपयोग किया जाता है जबकि अन्य भागों को छोड़ दिया जाता है जो कहीं से भी उचित नहीं है। इस मौके पर मखाना अनुसंधान केन्द्र दरभंगा के वैज्ञानिक डा. इंदुशेखर सिंह ने कहा कि मखाना की खेती जलजमाव वाले क्षेत्र में किया जाना चाहिए। बदलते मौसम, नए सड़कों एवं रेल लाइन बनने से जल निकासी की समस्या बढ़ती जा रही है। अधिक वर्षा होने पर खेती योग्य भूमि मे जलजमाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जहां मखाना एवं सिंघाड़ा की खेती सफलता पूर्वक खेती कर किसान अपनी आय को बढ़ा सकते है। वहीं रविन्द्र कुमार जलज ने मछली संचयन, तालाब प्रबंधन तालाब की तैयारी की जानकारी देते हुए कहा, अंगुलिका संचय के पुर्व पुराने तालाबों को गर्मी के मौसम में सुखाकर जुताई करनी चाहिए। इससे सभी अंवाछित मछलियों, जलीय खर पतवारों से मुक्ति मिल जाती है एवं तालाब में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि जलकुंभी के उन्मूलन में 2 एवं 4 डी रसायन का प्रयोग अवस्थानुसार 2 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के दर से किया जा सकता है। इस प्रशिक्षण में दरभंगा के किसान मोहन सहनी, राजन कुमार झा, विनोद राम, प्रभात कुमार राम, विमल सहनी, मोहन सहनी, राजू सहनी, गोविन्द सहनी, उपेन्द्र कुमार यादव, संतोष यादव एवं पप्पू सहनी आदि भाग लिया। इस अवसर पर महाविद्यालय के अन्य वैज्ञानिक डा. पारस नाथ आदि ने सहयोग दिया। कार्यक्रम का संचालन मुख्य समन्वयक मखाना वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ पंकज कुमार यादव ने दिया।मछली पालन के लिए आवश्यक सुझाव- तालाब के लिए ऐसी जगह का चुनाव किया जाए जहां की मिट्टी चिकनी या दोमट हो। - तालाब के लिए नीची जगह का चुनाव हो ताकि पानी अधिक दिनों तक जमा रहे। - तालाब का आकार न तो बहुत बड़ा होना चाहिए और न ही अधिक छोटा। - तालाब आयताकार हो और लंबाई उसकी चैड़ाई से तीन गुनी होनी चाहिए।- तालाब की तलहटी साफ रहनी चाहिए। इसमें कोई पत्थर या पेड़ की जड़ इत्यादि नहीं हो। - तालाब में बाहर से पानी लेने के रास्ते में पाइप लगा रहना चाहिए। इसके लिए सिमेंट या मिट्टी का पक्का पाइप इस्तेमाल किया जा सकता है। - बरसात के दिनों में एकत्र अधिक पानी को बाहर निकालने के लिए भी तालाब के बांध के ऊपर की तरफ पाइप लगा होना चाहिए। - मछलियों को दिये जाने वाले पूरक आहार को दो बराबर भागों में बांटकर सुबह और शाम देना आवश्यक है।- अगर तालाब में मुलायम जलीय पौधे न हों या ऊपर से घास देने की व्यवस्था न हो तो ग्रास कार्प का संचय नहीं करना चाहिए।- यदि मछलियां पानी की सतह पर समूह में घूम रही हो या किसी बीमारी की आशंका हो तो तालाब में चूना का प्रयोग करना चाहिए और नजदीकी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।

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