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पूर्णिया प्रमंडल का ‘बाबाधाम वरुनेश्वर स्थान

...फोटो बड़हरा कोठी, एक संवाददाता। पूर्णिया प्रमंडल के बाबाधाम के नाम से मशहूर बड़हरा प्रखंड के प्रसिद्ध वरुनेश्वर स्थान मंदिर में श्रावणी मेला में...

पूर्णिया प्रमंडल का ‘बाबाधाम वरुनेश्वर स्थान
Newswrapहिन्दुस्तान टीम,पूर्णियाTue, 12 Jul 2022 12:12 AM
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बड़हरा कोठी, एक संवाददाता

पूर्णिया प्रमंडल के बाबाधाम के नाम से मशहूर बड़हरा प्रखंड के प्रसिद्ध वरुनेश्वर स्थान मंदिर में श्रावणी मेला में उमड़ने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रण करने के लिए तैयारियां जोर-शोर से जारी है। सूबे के कोने-कोने से यहां श्रद्धालु बाबा के दर्शन को पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त यहां श्रद्धा पूर्वक बाबा को जलार्पण कर मन्नत मांगते हैं उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यूं तो सभी दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, परन्तु सावन माह में यहां भक्तों की काफी लम्बी कतार लग जाती है। पूरे माह श्रावण के मौके पर जलार्पण करने के लिए सहरसा, मधेपुरा, खगड़िया, भागलपुर, किशनगंज, मुंगेर, सुपौल, कटिहार जिले के अलावे पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल,आसाम और पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु भागलपुर सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर यहां आते हैं।

.....एक माह तक मेला, 20 सीसीटीवी कैमरे से नजर :

अनुमंडल का चर्चित यह मेला पूरे एक माह तक चलता है। मेला में मुख्य रूप से लकड़ी से बने सामानों की खरीदारी होती है। वहीं मेला में झूला, मिठाई सहित कई प्रकार की दुकानें शोभा बढ़ती है। मेला परिसर में 20 सीसीटीवी कैमरे से नजर रखा जाता है। वहीं चार दंडाधिकारी और 20 पुलिस बल की अतिरिक्त तैनाती यहां रहती है जबकि करीब 125 मेला कमेटी के कार्यकर्ता पूरे माह कार्य में तत्परता के साथ रहते हैं। मेले में लाइट, पानी और रहने की व्यवस्था मंदिर न्यास समिति द्वारा कराया गया है। कोरोना महामारी को लेकर दो वर्षों से श्रावण माह में मंदिर में पूजा करने से रोक लगी थी। इस बार मंदिर खुले रहने से श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होने की संभावना जतायी जा रही है।

..पांडवों ने भी की थी बाबा की पूजा :

एक किम्वदंती के अनुसार द्वापर युग में महाभारत युद्ध से पूर्व वनवास के दौरान पांडव यहां डेरा डाले थे और पांडवों को जान से मारने की नियत से दुर्योधन ने इसी वारनावर्त में अपने सहयोगी पुरोचन के सहयोग से लाह का घर बनवाया था। दुर्योधन नें जब पांडव को मारने की नियत से लाक्षागृह को आग के हवाले किया तो पांडव सभी भाई मंदिर के ठीक सामने स्थित शिवगंगा के नीचे से बने सुरंग के रास्ते सकुशल बाहर निकल गए थे। उसके बाद से इस स्थान का नाम वारनावर्त यानी वरना पड़ा था। इसके बगल से गुजरने वाली नदी का नाम वरुणाधार और इसके बगल के गांव का नाम भी वरुना पड़ा था। जनमानस में एक और किम्वदंती प्रचलित है कि अगस्त ऋषि के शिष्य वरुण ऋषि ने उक्त शिवगंगा में स्नान कर बाबा वरुनेश्वर नाथ का पूजा अर्चना की थी और तब से यह पावन स्थान वरुनेश्वर स्थान के नाम से विख्यात हुआ था। इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व भी जग जाहिर है। साल 1950 के आसपास बाबा वरुनेश्वर स्थित कतिपय टीलों में से एक की खुदाई की गई थी जिसमें बहुमूल्य प्रस्तर निर्मित मूर्तियां, ईटें व कई अन्य वस्तुएं प्राप्त हुई थी।

..मंदिर का इतिहास :

जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर बीकोठी प्रखंड धमदाहा प्रखंड एवं भवानीपुर प्रखंड के सीमा पर मौजूद बाबा वरुनेश्वर मंदिर के बारे में कई किम्वदंतियां प्रचलित हैं। बीकोठी प्रखंड के सिरसिया मौजा में वरुणा गांव के समीप वरुन नदी के तट पर बाबा वरुनेश्वर का भव्य व आकर्षक मंदिर अवस्थित है। द्वादस लिंगों की तरह वरुनेश्वर मंदिर का कामना शिव लिंग स्वयंभू लिंग है अर्थात यह शिव-लिंग अपने भक्तों के कल्याणार्थ स्वयं प्रकट हुआ है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में यहां घोर जंगल हुआ करता था। इस इलाके के चरवाहे यहां के जंगलों में अपना जानवर चराने का काम करता था। सभी दिनों की भांति चरवाहे इस जंगल में अपनी गायें चरा रहे थे। इस दौरान झुण्ड से निकल कर एक काली गाय को एक ख़ास दिशा की तरफ जाते देखा गया। गाय प्रतिदिन ऐसा करती थी। कौतुहलवश चरवाहों नें उस काली गाय का पीछा किया। अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वह गाय अपने स्तन से दुग्धधार बरसा रही थी। चरवाहे दुग्धधार से नहाये स्वयंभू शिवलिंग के दिव्य दर्शन कर चिल्लाने लगे। चरवाहों के चिल्लाने पर आस-पड़ोश के ग्रामीण वहां दौड़ पड़े। नयनाभिराम शिवलिंग को को देख चकित-चित लोगों नें इसकी खुदाई करने की ठान ली। कहा जाता है कि खुदाई करते करते सब थक गए। शिवलिंग से स्वतः स्फूर्त लाल रंग का नीर निकलते देख ग्रामीणों नें विधि-विधान से इसकी पूजा अर्चना की गई। उसके बाद स्थानीय लोगों के द्वारा सामूहिक प्रयास से वहां फूस की छतरी बनाई गयी। उसके बाद वहां बहदुरा स्टेट के रणविजय सिंह के पूर्वजों के द्वारा बाबा वरुनेश्वर का मंदिर बनाया गया जो 1934 के प्रलयंकारी भूकम्प में ध्वस्त हो गया। बाद में पुनः बाबा की प्रेरणा से विष्णुपुर ड्योढ़ी के धीर नारायण चंद ने मंदिर निर्माण का श्रेय प्राप्त किया। इस प्रकार समय बीतता गया और बाबा वरुनेश्वर स्थान का विकास होता गया। पड़ोस के वरुणा ग्राम के जमींदार रामलाल चन्द्र ने बाबा मंदिर के बगल में पार्वती मंदिर का निर्माण करवाया। वहीं जन सहयोग से परिसर में राम-जानकी मंदिर एवं हनुमान मंदिर भी बनाये गए और बिहारीगंज मधेपुरा के एक मारवाड़ी ने मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक धर्मशाला भी बनवाया है।

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