दुर्गा सप्तशती के सभी तेरह अध्याय के पाठ से अलग-अलग इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति के लिए दुर्गा सप्तशती से सुगम और कोई भी मार्ग नहीं है। आचार्य संजय कुमार तिवारी शशिबाबा के अनुसार नवरात्र में विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों का पाठ करने का विधान है ।
प्रथम अध्याय: हर तरह की चिंता दूर होती है। शत्रु भय दूर होने के साथ शत्रुओं का नाश होता है।
द्वितीय अध्याय: शत्रु द्वारा घर एवं भूमि पर अधिकार करने एवं किसी भी प्रकार के वाद विवाद आदि में विजय प्राप्त होती है।
तृतीय अध्याय: युद्ध एवं मुकदमे में विजय, शत्रुओं से छुटकारा मिलता है।
चतुर्थ अध्याय: धन, सुन्दर जीवन साथी एवं मां की भक्ति की प्राप्ति होती है।
पंचम अध्याय: भक्ति मिलती है। भय, बुरे स्वप्नों और भूत-प्रेत की बाधाओं का निराकरण होता है।
छठा अध्याय: समस्त बाधाएं दूर होती हैं। मनोवांक्षित फलों की प्राप्ति होती है।
सातवां अध्याय: हृदय की समस्त कामना और किसी विशेष गुप्त कामना की पूर्ति होती है।
आठवां अध्याय: धन लाभ के साथ वशीकरण प्रबल होता है।
नौवां अध्याय: खोये हुए की तलाश में सफलता मिलती है। संपत्ति एवं धन का लाभ भी होता है।
दसवां अध्याय: गुमशुदा की तलाश होती है। शक्ति और संतान का सुख भी मिलता है।
ग्यारहवां अध्याय: चिंता से मुक्ति , व्यापार में सफलता, सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
बारहवां अध्याय: रोगों से छुटकारा, निर्भयता, समाज में मान-सम्मान मिलता है।
तेरहवां अध्याय: माता की भक्ति एवं सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।