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रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दमाद...

रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दमाद...... गीत का अर्थ: हे छठ मइया हमें बेटी दो ताकि घर में रौनक आये और हमारा दामादा पढा लिखा हो।   आमतौर पर छठ को बेटों का त्योहार माना जाता है।...

रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दमाद...
पटना | विनय झा सुरेन्द्र मानपुरीMon, 12 Nov 2018 09:08 PM
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रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दमाद......
गीत का अर्थ: हे छठ मइया हमें बेटी दो ताकि घर में रौनक आये और हमारा दामादा पढा लिखा हो।  

आमतौर पर छठ को बेटों का त्योहार माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से महिलाओं को बेटा पैदा होने का वरदान मिलता है। पर छठ के दौरान हर घर-आंगन में गूंजने वाते परंपरागत गीत, रु़नकी-झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दमाद, हे छठी मइया...से पता चलता है कि बेटी के बिना हर परिवार अधूरा है। समाज में सैकड़ों वर्ष से छठ पर्व पर यह गाया जा रहा है। जाहिर है,  इस पर्व की आत्मा बेटियां हैं। हर घर-आंगन को बेटी की चाहत  है। बेटी मांगने से साथ ही महिलायें छठ मइया से पढ़ा-लिखा दामाद भी मांगती हैं।

एक अन्य गीत में श्रद्धालु छठ माता से बेटी जरूर मांगने की बात करती है- पांच पुत्तर, अन्न धन लक्ष्मी, धियवा (बेटी) मंगबो जरूर। इस पारंपरिक गीत में धन-धान्य और पुत्र के साथ ही बेटी की भी कामना की गई है। इस गीत की पंक्ति में जुड़ा जरूर शब्द यह साबित करता है कि हमारा समाज बेटे-बेटियों में फर्क नहीं करता। श्रद्धालु छोटी-मोटी सुंंदर बेटी की कामना करते हुए एक अन्य गीत में कहती है- छोटी-मोटी सुनर बेटियवा के सुनर दिह वर, राम जइसन दिहा दुल्हवा, लक्ष्मण जैसन देवर।

पटना में सायंकालीन अर्घ्य का समय 
शाम: 4.30 बजे से 5.10 बजे 
प्रात: कालीन अर्घ्य का समय:-
प्रात: 6.32 बजे से लेकर 7.15 बजे

कौन हैं छठ मइया
अथर्वेद के अनुसार, छठ देवी भगवान भास्कर की मानस बहन हैं। उन्हें षष्ठी देवी भी कहते हैं। उनकी पूजा करने से संतान की प्रप्ति होती है। 

सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
छठ पूजा भगवान सूर्य को समर्पित है। मान्यता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से सुख और संपत्ति का वरदान मिलता है। साथ ही सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

छठ बेटियों के लिए भी है, तभी तो हमलोग रूनकी-झुनकी बेटी मांगते हैं। छठ गीतों में बेटियों के लिए मनौती करती मां को आप सुन सकते हैं। ये बेटियां हमारी शान हैं। इनके रहने से हमारे घरों की रौनक बढ़ती हैं। बेटियां शुरू से छठ प्रसाद बांटने घर-घर जाया करती हैं, फिर एक मां बेटियों की मनौती क्यों न करे। वैसे भी बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं है और छठ में तो दोनों मिलकर काम करते हैं। फिर बेटे की तरह बेटियों के लिए भी मनौती बार-बार होनी चाहिए। 
-शारदा सिन्हा, प्रख्यात लोक गायिका

छठ महापर्व में भगवान भास्कर के साथ षष्ठी माता की भी आराधना की जाती है। छठी माता के आशीर्वाद पाने के लिए बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी मनायी जाती है। इस वजह से लोग छठ  में बेटी की भी कामना करते हैं। सृष्टि के हिसाब से बेटी प्रकृति की प्रतीक है। प्रकृति व पुरुष में समन्वय नहीं रहेगा तो सृष्टि कैसे चलेगी। इसलिए लोग छठ में बेटी की कामना करते हैं। दरअसल बेटे के मुकाबले बेटियां मां-बाप का अधिक ध्यान रखती हैं। 
- विपेंद्र झा माधव, ज्योतिषाचार्य  

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