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बिहार बाढ़: नेपाल की ये 5 नदियां बनी लाखों लोगों के दुख की स्थायी वजह, देखें वीडियो

हर साल बाढ़ की विभिषका झेलने को अभिशप्त बिहार में एक बार फिर बाढ़ का संकट जारी है

Nikhilलाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीTue, 15 Aug 2017 02:11 PM

12 जिलों की लगभग 35 लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में, देखें वीडियो

 12 जिलों की लगभग 35 लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में, देखें वीडियो1 / 4

हर साल बाढ़ की विभिषका झेलने को अभिशप्त बिहार में एक बार फिर बाढ़ का संकट जारी है। भारी बारिश और नेपाल से छोड़े गए पानी के कारण बाढ़ की स्थिति भयावह हो गई है। बिहार के 12 जिलों की लगभग 35 लाख की आबादी बाढ़ की चपेट में है। उत्तर बिहार में हर साल बाढ़ से भीषण तबाही लाने वाली कोसी नदी के अलावा महानंदा नदी भी कुछ जगहों पर खतरों के निशान के ऊपर बह रही है। बिहार में बाढ़ आने की मुख्य वजह नेपाल द्वारा पानी छोड़े जाना है और ये पानी नेपाल से बहाने वाली पांच नदियों से बिहार में आता है। जिन नदियों से बिहार में पानी आता है उनमें प्रमुख नदियां हैं कोसी, घाघरा  गंडक, कमला और बागमती शामिल हैं। नेपाल द्वारा 4.85 लाख क्यूसेक पानी वाल्मीकिनगर गंडक बराज से रविवार को छोड़े जाने से स्थिति और विकराल हो गई है। अररिया, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी में स्थिति गंभीर है।

नेपाल की नदियां तबाही का कारण

बिहार में नदियों का जाल बिछा है। यहां मुख्य 35 नदियां एवं लगभग 85 धाराएं हैं। बाढ़ से ज्यादा प्रभावित इलाका उत्तर बिहार में आठ मुख्य नदियां हैं। जिसमें कोसी, कमला, बागमती, गंडक, अधवारा समूह की नदियां, बूढ़ी गंडक, घाघरा एवं महानन्दा शामिल है। इनमें से कोसी, घाघरा  गंडक, कमला और बागमती का उद्गम स्थल नेपाल है। ये सभी नदियां अपने प्रवाह में प्रारम्भिक दौर से गुजर रही हिमालय की मिट्टी तथा रेत बहाकर लाती है। नदियां जब पहाड़ों से उतर कर बिहार के मैदानों में उतरती है तो उसकी रफ्तार तीव्र हो जाती है जिससे नदी में मिट्टी और रेत जमने लगता है। तटबन्धों के कारण जहां धीरे-धीरे नदियां उथली होने लगती हैं। जिसके कारण कमजोर तटबंध या तो टूट जाती है या तटबंध के ऊपर से पानी बहने लगता है।

30 साल बाद बिहार में भयानक बाढ़

30 साल बाद बिहार में भयानक बाढ़2 / 4

नदियां जब पहाड़ों से उतर कर बिहार के मैदानों में उतरती है तो उसकी रफ्तार तीव्र हो जाती है जिससे नदी में मिट्टी और रेत जमने लगता है। तटबन्धों के कारण जहां धीरे-धीरे नदियां उथली होने लगती हैं। जिसके कारण कमजोर तटबंध या तो टूट जाती है या तटबंध के ऊपर से पानी बहने लगता है।

भारी बारिश से कोसी हर साल उत्तर काल बिहार में काल बनकर गुजरती है। इसके अलावा पिछले 60 सालों में इसका तटबंध 7 बार टूट चुका है जिससे भयंकर तबाही मची है। कोसी पर तटबंध को बनाने को लेकर भारत और नेपाल के बीच 1954 में समझौता हुआ था।म यह बांध नेपाल की सीमा में बना और इसके रखरखाव का काम भारतीय इंजीनियरों को सौंपा गया।

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बिहार की शोक कोसी, 7 बार टूट चुका है तटबंध

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वर्ष 1968 में तटबंध पांच जगहों से टूटा था और उस समय पानी का बहाव नौ लाख 13 हज़ार क्यूसेक मापा गया था। हालांकि पहली बार 1963 में ही तटबंध टूट गया था। नेपाल में यह तटबंध 1963 में डलबा, 1991 में जोगनिया और 2008 में कुसहा में टूटा था। इसकी क्षमता 9 लाख क्यूसेक माना गया था लेकिन 2008 में जब यह टूटा तो इसमें बहाव सिर्फ 1 लाख 44 हजार क्यूसेक था।

कोसी नदी को दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत, एवरेस्ट और कंचनजंघा से निकलने का गौरव प्राप्त है। नेपाल में इसे सप्तकोसी के नाम से जाना जाता है। कोसी की सहायक धारा अरूण नदी, दूध कोसी, सून कोसी, ताम कोसी आदि लंबी यात्रा कर कोसी में समाहित होकर भारत में प्रवेश करती हैं।

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क्यों विकराल रूप धारण कर लेती है कोसी

क्यों विकराल रूप धारण कर लेती है कोसी 4 / 4

भारत में यह 724 किमी लंबी यात्रा करने के भागलपुर में गंगा में समाहित हो जाती है। यह नदी हर साल अपनी धारा बदलने के लिए जानी जाती है। महज 150 साल पहले पूर्व की ओर बहती थी लेकिन इसके बाद से वह हर 20-25 साल पर अपना रास्ता बदलकर पश्चिम की ओर खिलकती रही।

कोसी नदी के इस व्यवहार के पीछे इस नदी द्वारा लाए गए सिल्ट की अत्यधिक बताई जाती है। हर वर्ष ज्यादा मात्रा में गाद लाने के कारण नदी की पेटी बहुत जल्द ऊंची हो जाती थी और मजबूरन उसे अपना रास्ता बदलकर निचले इलाके में बहने के लिए मजबूर होना पड़ता था।