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लॉकडाउन ने बदल दी जिंदगी, लोग जान गए जीने का सलीका

देशभर में जनवरी का आगाज पूरे हर्षोल्लास के साथ हुआ। इधर, चीन में कोरोना ने दस्तक दे दी थी। बावजूद इसकी भयावहता से बेपरवाह लोगों की जिंदगी पटरी पर सरपट दौड़े जा रही थी। फरवरी के पहले सप्ताह से जिले...

लॉकडाउन ने बदल दी जिंदगी, लोग जान गए जीने का सलीका
हिन्दुस्तान टीम,नवादाWed, 13 May 2020 11:52 AM
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नवादा। देशभर में जनवरी का आगाज पूरे हर्षोल्लास के साथ हुआ। इधर, चीन में कोरोना ने दस्तक दे दी थी। बावजूद इसकी भयावहता से बेपरवाह लोगों की जिंदगी पटरी पर सरपट दौड़े जा रही थी। फरवरी के पहले सप्ताह से जिले में कोरोना से बचाव को लेकर सुगबुगाहट शुरू हुई, जो मार्च के दूसरे सप्ताह तक परवान पर पहुंच गई। 22 मार्च को जनता कर्फ्यू में बंदी पर एक जश्न मना, तो 23 मार्च से राज्य में लॉकडाउन का दौर शुरू हुआ, जो 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के साथ पूरे देश में लागू हो गया। एकाएक तेज रफ्तार से भागती जिंदगी में झटके के साथ ब्रेक लगी और फिर एक-एक दिन करके लॉकडाउन के 50 दिन पूरे हो गए।

देशभर में लॉक डाउन जारी है। घर-बाहर सभी जगह बंदिशें हैं। इसके लागू हुए 50 दिन गुजर गये। कोरोना के कहर ने ऐसे हालात पैदा किए, जिसमें आम व खास सबकी जिंदगी बदल गई है। इन दिनों में लोगों की दिनचर्या बदली। लोग जीने का भी सलीका सीख गये। आम आदमी की भाग दौड़ वाली जिंदगी मानो रूक सी गयी है। पहले की लाइफ स्टाइल में काफी बदलाव आया है। जीने का पुराना ढर्रा धीरे-धीरे करके छूटते जा रहा है। शहर के हालात भी अब पहले जैसे नहीं रहे। देर रात तक गुलजार रहने वाला बाजार अब शाम ढलते ही शांत हो जाता हैं। जिला मुख्यालय के प्रजातंत्र चौक पर दिनभर वीरानगी के बीच सन्नाटा पसरा रहता है। हालांकि जिंदगी की आपाधापी में दिन बिताने वाला समाज का एक तबका सुकून के दो पल जी रहा है, तो अंतिम पायदान पर जीनेवालों में पेट की चिंता उन्हें खाए जा रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो निश्चित तौर पर पेट की आग बगावत करेगी। ऐसे आसार बनते दिखे रहे हैं। फिलहाल लॉकडाउन 3.0 को लेकर मंगलवार की रात 08 बजे प्रधानमंत्री की घोषणा आगे क्या रंग लाती है। यह आनेवाला समय ही बतायेगा।

वीरान हो गए बाजार, पहुंचते है गिने-चुने ग्राहक

वैश्विक महामारी कोरोना के भय से शहर-बाजार वीरान हो गए हैं। जिला सहित प्रखंड मुख्यालयों में स्थित बाजार की व्यवसायिक गतिविधियां पूरी तरह ठप है। कहीं कुछ दुकानें खुलती है, तो प्रशासन का भय दुकानदारों को सालता है। जिला मुख्यालय में जहां हर दिन करोड़ों रुपए का व्यापार होता था। दवा, अनाज, फल-सब्जी और मनिहारी की मंडियां सजती थी। सर्राफा बाजार गुलजार रहता था। शहर के आसपास के छोटे-मोटे कारखाने जोर पर होते थे। सब में ताला लटका है। व्यवसायी घर पर बैठे हैं। व्यापार में काफी बदलाव आया है। 50 दिन पहले अहले सुबह से शुरू होनेवाली दिनचर्या देर रात तक जारी रहती थी। अब आलम यह है कि दिन के कुछ घंटे व्यापार होता है। उसमें भी गिने-चुने ग्राहक ही पहुंचते हैं। गांवों से आवाजाही बंद होने से व्यापार काफी सीमित हो गया है। इसमें भी कई उद्योग-धंधों को खोलने की सरकार ने अब तक मंजूरी नहीं दी है।

रेलवे स्टेशन व बस अड्डों पर थमी रफ्तार

पहियों पर दौड़नेवाला एक संसार पिछले 50 दिनों से ठहर गया है। ट्रेन, बस और निजी वाहनों की रफ्तार थमी है। जिला मुख्यालय के तीन प्रमुख बस अड्डों पर राज्य के बाहर से लेकर अन्य जिले और गांवों में जानेवालों का तांता लगा रहता था। फिलहाल रजौली बस स्टैंड पर फल और सब्जी की मंडी लगी हैं, बिहार बस स्टैंड और तीन नंबर बस स्टैंड वीरान पड़ा हैं। दिन-रात गुलजार रहनेवाला नवादा रेलवे स्टेशन फिलहाल कुत्तों का अड्डा बना है। स्टेशन पर इक्के-दुक्के रेलकर्मियों के सिवा कोई नहीं दिखता। आठ जोड़ी पैसेंजर ट्रेन, एक एक्सप्रेस और दो साप्ताहिक एक्सप्रेस ट्रेनों के चलने का सिलसिला 50 दिनों से थमा है। करीब 01 हजार ट्रेनों के परिचालन का गवाह बननेवाले रेलवे स्टेशन से इन 50 दिनों में मात्र 02 सौ मालगाड़ियां गुजरी हैं। हां, पेट्रोल और डीजल की खपत में बेतहाशा कमी आई हैं।

स्कूलों में सजी है फल और सब्जी की मंडिय़ां

स्कूल-कॉलेजों में अप्रैल महीने से शुरू होनेवाला शैक्षणिक सत्र अब तक लटका है। आलम यह है कि गांधी और कन्हाई स्कूल जैसे सरकारी स्कूलों के परिसर में फल और सब्जी की मंडियां सजी हैं। महीनों हो गए, स्कूलों की कक्षाएं बच्चों की खिलखिलाहट सुनने को उतावली हैं। कॉलेज को कॉमन रूम में युवाओं की हंसी-ठिठोली पर पहरा लगा है। लॉकडाउन में सभी तरह की शैक्षणिक गतिविधियां बंद हैं। हालांकि निजी और सरकारी स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाएं चालू की हैं। लेकिन घंटों की पढ़ाई कुछ ही मिनटों में सिमट कर रह गई है। यहां तक की परीक्षाएं भी अटकी पड़ी हैं। नए सत्र में एडमिशन और फिर अगली कक्षाओं में प्रवेश के साथ नए शिक्षक-शिक्षिकाओं के साथ तालमेल बच्चे और युवा सभी काफी मिस कर रहे हैं।

लॉकडाउन ने घटाई बीमारों की संख्या, अस्पतालों में मरीज का टोटा

लॉकडाउन के पहले जिस सदर अस्पताल में अहले सुबह से मरीजों की कतारें लगती थी। वहां दिनभर में गिने-चुने मरीज पहुंच रहे हैं। ओपीडी रजिस्ट्रेशन काउंटर पर प्रत्येक दिन 07-08 सौ मरीजों का पुर्जा बनता था, जो अब दिनभर में 80-90 तक ही पहुंचता हैं। निजी क्लिनिक, अस्पताल, नर्सिंग होम का कमोबेश यही हाल हैं। सदर अस्पताल के ओपीडी, इमरजेंसी, सर्जिकल सहित महिला व बच्चा वार्ड शांत पड़ा है। लॉकडाउन में बीमारों की संख्या में काफी कमी आयी है। आमतौर पर हल्के-फुल्के व्याधियों को लेकर भी लोग सदर अस्पताल पहुंचते थे। फिलहाल लोग घर पर ही घरेलू नुस्खे का प्रयोग कर रोगमुक्त हो रहे हैं।

अब शहर से दिखता है विश्व शांति स्तूप का नजारा

नवादा तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा है। दक्षिण पूर्व में कौआकोल की पहाड़ियां है। तो दक्षिण दिशा में कोडरमा की पहाड़ियां। जबकि उत्तर-पश्चिम में राजगीर की पहाड़ियां नवादा की सीमाएं बनाती है। लॉकडाउन के बाद प्रदूषण का स्तर नगण्य हैं। ऐसे में प्रकृति और उसकी धरोहरें अपने पुराने स्वरूप में दिखने लगी हैं। आज से 50 दिन पूर्व जिला मुख्यालय से इन पहाड़ियों की धुंधली सी तस्वीर दिखती थी। जो अब पूरी तरह स्पष्ट हो गया हैं। शहर के किसी भी ऊंची इमारत से दिन के उजाले में राजगीर के गृद्धकूट पर्वत पर बना विश्व शांति स्तूप अब दमकता नजर आता है। पहाड़ियों पर उगी वनस्पतियां भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। इन दिनों एयर क्वालिटी इन्डेक्स (एक्यूआई) भी सामान्य स्तर पर पहुंचा हुआ है।

घर-परिवार में बीत रहा समय, हेल्दी हुआ लाइफस्टाल

लॉकडाउन के दौर में पारिवारिक मूल्य बढ़े हैं। लोग बड़े-बुजुर्गों के साथ-साथ बच्चों को भी समय दे रहे हैं। दुकानें सीमित घंटों में खुल रही हैं। अहले सुबह और देर रात तक की दिनचर्या पर लगाम लगी हैं। इससे लोगों के परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है। कई कार्यालयों के काम घरों से निबटाए जा रहे हैं। ऐसे में देर रात घर पहुंचनेवाले अभिभावकों के साथ बच्चे काफी कुछ साझा कर रहे हैं। लोगों का लाइफस्टाइल भी बदला है। फास्ट फूड, जंक फूड खानेवाले लोगों का हाजमा ठीक हुआ है, कई प्रकार की पेट की बीमारियों से लोगों को राहत मिली है। लोग घरों में ही कई प्रकार के व्यंजन बनाकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर शेयर कर रहे हैं। योग-प्राणायाम सहित स्वाध्याय भी लोगों की हॉबी बनी हैं।

लॉकडाउन ने बदले स्वभाव, सामाजिक होने का दिलाया एहसास

लॉकडाउन का 50 दिन होने को है। लेकिन समाज का हर वर्ग सीमित संसाधनों में गुजर-बसर करने को सीख रहा है। समाज के अंतिम वर्ग के लोगों के लिए खाने-पीने की जरूरी वस्तुओं को उपलब्ध कराने में कई बुद्धिजीवी लोग आए। सामाजिक ताना-बाना काफी बदला। जिले में इन 50 दिनों के दौरान किसी की मौत कम-से-कम भूख से नहीं हुई, जो समाज के प्रति हमारी जिम्मेवारियों का एहसास दिलाती है। एक बड़ा बदलाव अलग आया, कल तक मास्क, सैनेटाइजर और कोरोना से अंजान लोग भी आज पूरी शिद्दत से इन वस्तुओं का उपयोग कर कोरोना संक्रमण से बचाव को तत्पर दिख रहे हैं। जो भी हो, लॉकडाउन ने हमें जिम्मेवारियों को एहसास दिलाया। 50 दिन पहले के आदमी को कोरोना ने एक परिवार, समाज और प्रकृति की बेहतरी के साथ जीने की सीख दी हैं।

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