आश्विन शुक्ल पक्ष के साथ ही शनिवार 14 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू होगा, जो 28 सितंबर तक चलेगा। पितृ पक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इन 15 दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य शादी-विवाह, उपनयन संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं होंगे। इस पक्ष में नई वस्तुओं की खरीद भी वर्जित है। इन 15 दिनों में नए मकान या वाहन आदि की खरीद नहीं करनी चाहिए। 28 सितंबर शनिवार कृष्ण पक्ष अमावश्या तक पितृपक्ष में पितरों के तर्पण के लिए कार्य होगा।
मान्यता है कि इन दिनों पितर अपने परिजनों से मिलने आते हैं और उनसे मिलने वाले सेवा से प्रसन्न होकर 15 दिनों बाद मंगल आशीष देकर अपने धाम प्रस्थान करते हैं। नवादा के ज्योतिषविद दिव्यांशु शेखर पाठक के अनुसार, 15 दिनों तक चलने वाला पितृ पक्ष श्राद्ध का मृत्यु से संबंध होता है। लिहाजा इस पक्ष को शुभ नहीं माना जाता है। जिस प्रकार लोग परिजनों की मृत्यु पर शोकाकुल रहते हैं, शुभ व मांगलिक कार्यों नहीं करते हैं, ठीक वैसा ही पितृ पक्ष में होता है। पितरों की तृप्ति व स्वयं की उन्नति के लिए श्रद्धापूर्वक तर्पण और पिंडदान करना चाहिए। श्राद्ध कर्म में दोपहर 11.40 से 12.20 बजे तक के समय में काला तिल, गंगाजल, तुलसी व ताम्रपत्र से तर्पण करना चाहिए। लोहे का पात्र श्राद्ध में वर्जित है। साथ ही गौग्रास देने ने पितरों को प्रसन्नता मिलती है। इस वजह से इन दिनों पितरों की प्रसन्नता के लिए कार्य करना चाहिए। पितृपक्ष में पितरों का गया श्राद्ध करने के लिए लोग शुक्रवार से ही गया रवाना हो रहे हैं।