
नदियों के अतिक्रमण से सिंचाई की समस्या बनने लगी विकराल
संक्षेप: कौआकोल, शिवशंकर सिंह कौआकोल की सिंचाई के लिए प्रमुख रूप से क्षेत्र में अपनी पहचान बनाए रखने वाली नाटी एवं बघेल नदी इन दिनों अतिक्रमण के कारण अपनी पहचान खोते चली जा रही है।
कौआकोल, शिवशंकर सिंह कौआकोल की सिंचाई के लिए प्रमुख रूप से क्षेत्र में अपनी पहचान बनाए रखने वाली नाटी एवं बघेल नदी इन दिनों अतिक्रमण के कारण अपनी पहचान खोते चली जा रही है। इन नदियों के किनारों को स्थानीय लोगों के द्वारा अतिक्रमण कर लिए जाने के कारण नदी की धार कुंठित होते चली जा रही है। जो खेती किसानी के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहा है। किसानों के समक्ष सिंचाई की समस्या विकराल होने लगी है। चूंकि कौआकोल में फसलों की सिंचाई को लेकर न तो कहीं कोई ट्यूबवेल की व्यवस्था है और न ही कोई नहर की ही सुविधा है।

किसान नदियों से पइन निकाल कर आहर तथा पोखर में पानी को एकत्र कर इसे पटवन के कार्य में लाते हैं। पर अतिक्रमण कारियों ने उनकी उम्मीद पर पानी फेरने का काम कर दिया है। नदी के किनारों का अतिक्रमण हो जाने से प्रखंड के दर्जनों गांव के किसानों को सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ रहा है। किसानों की सैकड़ों एकड़ खेती योग्य भूमि सिंचाई के कारण बंजर होने की कगार पर पहुंच गई है। जो किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो चुकी है। अतिक्रमण से प्रखंड के जोगाचक, जोरावरडीह, गुड़ीघाट, चोंगवा, पनसगवा, बन्दैली कला, बन्दैली खुर्द, रामपुर बलुआ, सलैया, विशनपुर, ओखरिया, पाली, ईंटपकवा, महुआईं, कटनी, विरदावन, मंदरा, बारा, बुकार तथा ढावा, कदहर, बरौन , वाजितपुर, खड़सारी, रुस्तमपुर, सारे, महापुर, छबैल, भोरमबाग, सरौनी समेत पकरीबरावां प्रखंड के भी कई गांवों के समक्ष पटवन की समस्या बिकराल बनी हुई है। इन गांवों के किसानों ने बताया है कि प्रखंड के तरौन, बीझो, कौआकोल, जोरावरडीह, गुड़ीघाट, बिन्दीचक, चोंगवा तथा सलैया में अतिक्रमणकारियों द्वारा नदी के किनारों की जमीन का बड़े पैमाने पर अतिक्रमण कर लिया गया है। जिसके कारण नदी की धार पूरी तरह से कुंठित हो गई है और नदी ने पइन का रुप धारण कर लिया है। समस्या को लेकर इन गांव के किसानों द्वारा सीओ से मिलकर कई बार नदियों को अतिक्रमण से मुक्त कराए जाने का आग्रह किया गया। लेकिन आज तक समस्या का हल नहीं निकल सका। जिसके कारण बरसात के दिनों में धान की फसल की पटवन के लिए प्रखंड के दर्जनों गांव के किसानों तथा अतिक्रमणकारियों के बीच झड़प होते रहती है। मामला स्थानीय पुलिस से लेकर कोर्ट तक पहुंच जाती है। बावजूद न तो स्थानीय जनप्रतिनिधि और न ही जनप्रतिनिधि इस समस्या को लेकर गंभीर हैं। और तो और अब स्थानीय प्रशासन के द्वारा भी नदी के किनारे की भूमि और धार को भरकर नदी के अस्तित्व को मिटाने का काम किया जा रहा। नदी की धार को भरकर खेल मैदान बनाने से किसान मायूस किसानों की शिकायत है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा कौआकोल थाना के आगे बघेली नदी की धार को भरकर खेल का मैदान बनाने का काम किया जा रहा है। किसानों ने स्थानीय प्रशासन के समक्ष प्रश्न खड़ा किया है कि आखिर नदी को भर कर खेल का मैदान बनाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र किस प्रकार संबंधित अधिकारी के द्वारा दिया गया कि नदी के अस्तित्व और सिंचाई के संसाधनों को मिटा कर वहां खेल का मैदान का निर्माण कर दिया जाए। एक तरफ सरकार नदियों तथा प्राकृतिक जलके श्रोतों के अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। पर्यावरण दिवस के अवसर पर अधिकारियों द्वारा लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा तथा खेतों के पटवन के लिए काम में आने वाले प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखने का संकल्प दिलाया जाता है। पर उन संकल्प लेने वाले लोगों के द्वारा ही प्रखंड क्षेत्र की नदियों का धड़ल्ले से अतिक्रमण करने का काम किया जा रहा है। सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष पटवन के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने का काम किया जा रहा है। जिस पर लाखों, करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ सरकार के मुलाजिमों के द्वारा ही इसके अस्तित्व को मिटाने का भी काम किया जा रहा है। नदियों के अस्तित्व को मिटाने से सिर्फ सिंचाई की समस्या ही उत्पन्न नहीं होगी बल्कि इसका दुष्प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ेगा। किसानों की पीड़ा है कि अंचल कार्यालय से महज पचास से सौ गज की दूरी पर लगातार अतिक्रमणकारियों द्वारा किए जा रहे प्राकृतिक संसाधनों की अतिक्रमण पर स्थानीय अधिकारियों का ध्यान नहीं जा रहा है तो प्रखंड क्षेत्र के दूर दराज के इलाकों में हो रहे अतिक्रमण का क्या होगा। प्रखंड क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हो रहे सरकारी भूमि का अतिक्रमण यहां के अधिकारियों की लापरवाही को दर्शाता है। पइन के अस्तित्व को मिटाने का किया जा रहा काम किसानों का कहना है कि एक तरफ सरकार नदी, पइन तथा प्राकृतिक जलके श्रोतों के अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। पर्यावरण दिवस के अवसर पर अधिकारियों द्वारा लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा तथा खेतों के पटवन के लिए काम में आने वाले प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखने का संकल्प दिलाया जाता है। पर उन संकल्प लेने वाले लोगों के द्वारा ही प्रखंड क्षेत्र की नदियों तथा पइन का धड़ल्ले से अतिक्रमण करने का काम किया जा रहा है। सरकार के मुलाजिमों के द्वारा लापरवाही एवं अनदेखी किए जाने के कारण अतिक्रमण कारियों द्वारा नदियों तथा पइन के अस्तित्व को मिटाने का काम किया जा रहा है। नदियों तथा पइन के अस्तित्व को मिटाने से सिर्फ सिंचाई की समस्या ही उत्पन्न नहीं होगी बल्कि इसका दुष्प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ेगा। किसानों की पीड़ा है कि अतिक्रमणकारियों द्वारा न सिर्फ नदी, आहर, पइन और चारागाह की जमीन को ही अतिक्रमण करने का काम किया जा रहा है कि बल्कि प्रखंड क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सरकारी भूमि का भी अतिक्रमण किया जा रहा है। जो चिंता का विषय है। नदियों के अतिक्रमण से पनपने लगी है पटवन की समस्या प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न नदियों के अतिक्रमण हो जाने के कारण किसानों के समक्ष सिंचाई की बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो चुकी है। उनके समक्ष अब सिंचाई का मुख्य संसाधन बोरिंग ही बचा है। पर यह हर तबके के किसानों के लिए संभव नहीं है। बोरिंग करने में किसानों को एक से डेढ़ लाख रुपए की पूंजी की आवश्यकता पड़ जाती है। जो छोटे किस्म के किसानों के लिए असंभव सा प्रतीत हो जाता है। नदियों से किसान अपनी फसलों की पटवन कर फसल तैयार कर लेते थे। इन सारी समस्याओं को देखते हुए प्रखंड के किसानों ने स्थानीय अधिकारियों से प्रखंड क्षेत्र की नदियों को अतिक्रमण से मुक्त कराने की मांग की है। ताकि किसान अपनी फसलों की पटवन आसानी से कर सकें। क्या कहते हैं किसान नदियों के अतिक्रमण कर लिए जाने से धीरे धीरे नदी का आकार सिमटता चला जा रहा है तथा नदी की धारा कुंठित होती चली जा रही है। लिहाजा नदियों के अतिक्रमण से किसानों के समक्ष सिंचाई की समस्या विकराल होती जा रही है। बिपिन सिंह किसान, बिन्दीचक। नदी हो या पटवन के कोई भी अन्य प्राकृतिक साधन इसका अतिक्रमण बिल्कुल ही गलत है। ऐसे अतिक्रमणकारियों पर स्थानीय पदाधिकारी को कार्रवाई कर पटवन के प्राकृतिक साधनों को अतिक्रमण से मुक्त कराने की आवश्यकता है। मिश्री प्रसाद उर्फ निराला जी, किसान लोहसिंहानी। स्थानीय पदाधिकारियों की अनदेखी के कारण अतिक्रमण कारियों का मनोबल बढ़ते चला जा रहा है। जिसके कारण सरकारी भूमि नदी, आहर, पइन आदि का अतिक्रमण धड़ल्ले से हो रहा है। जिसके सिंचाई की समस्या विकराल होती जा रही है। इस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। कामेश्वर सिंह, किसान बिन्दीचक। कौआकोल के किसान अपनी फसलों की पटवन के लिए पूर्ण रूप से प्राकृतिक साधनों पर ही आश्रित हैं। इसलिए स्थानीय पदाधिकारियों को क्षेत्र की नदियों तथा पइन को अतिक्रमण से मुक्त कराने की आवश्यकता है। देवेन्द्र राउत, किसान सेखोदेवरा। क्या कहते हैं जिम्मेदार नदी सिंचाई का मुख्य स्रोत है। इसका अतिक्रमण करना बिल्कुल ग़लत है। नदी तथा पइन खेती पटवन के लिए प्राकृतिक साधन है। इसका अतिक्रमण कतई बर्दाश्त योग्य नहीं है। इससे किसानों के समक्ष फसल पटवन की समस्या खड़ी हो सकती है। पर किसी के द्वारा नदी तथा पइन अतिक्रमण कर लिए जाने की शिकायत नहीं मिली है। शिकायत मिलने पर जिला प्रशासन से आदेश के आलोक में अतिक्रमण कारियों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई किए जाएंगे। मनीष कुमार , सीओ कौआकोल।

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