
शरद पूर्णिमा : भरणी नक्षत्र व लक्ष्मी योग में हुआ आस्थापूरित पूजन
संक्षेप: नवादा, हिन्दुस्तान संवाददाता।आस्था, अध्यात्म और सौंदर्य का अद्भुत संगम वाली शरद पूर्णिमा की रात को श्रद्धालुओं ने आस्था और भक्तिभाव से माता लक्ष्मी का पूजन किया।
नवादा, हिन्दुस्तान संवाददाता। आस्था, अध्यात्म और सौंदर्य का अद्भुत संगम वाली शरद पूर्णिमा की रात को श्रद्धालुओं ने आस्था और भक्तिभाव से माता लक्ष्मी का पूजन किया। आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि पर सोमवार को दोपहर 12:23 बजे से प्रारंभ होकर दूसरे दिन मंगलवार को सुबह 09:16 बजे तक रहे अनुकूल समय के क्रम में श्रद्धालुओं ने शुभ मुहूर्त में पूजा-विधान पूरा किया। शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागर पूजा का शुभ मुहूर्त रात्रि 11:45 बजे से लेकर 12:34 बजे तक रहा, हालांकि पूजा की हलचल शाम को चंद्रोदय के साथ ही 05:27 बजे से हो गया था। शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता रहा।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, सोमवार को चंद्रमा की किरणों से अमृत बूंदें झरती रहीं और प्रसाद स्वरूप खुले आसमान के नीचे रखे गए खीर के प्रसाद पर अमृत का संचार हुआ। मंगलवार की सुबह उठकर यह खीर प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं द्वारा ग्रहण किया जाएगा। शरद पूर्णिमा पर आकाश में पूर्ण चंद्र अपनी संपूर्ण ज्योति बिखेरने लगा तो यह न केवल खगौलिक, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अनमोल बन कर रह गया। स्वयं देवी लक्ष्मी के पृथ्वी पर अवतरण की मान्यता के अनुसार साधकों ने उस समय जागरण, ध्यान या पूजन में खुद को तल्लीन रखा। सभी श्रद्धालुओं ने माता से आशीष मांगा और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की करबद्ध प्रार्थना की। लक्ष्मी पूजन और जागरण की निभाई गई परम्परा शरद पूर्णिमा की रात्रि को देवी लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान पूरा करने के साथ ही श्रद्धालुओं ने जागरण भी किया। श्रद्धालुओं ने अपने घरों और दुकानों में धन की देवी की आराधना के क्रम में लक्ष्मी चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और श्रीसूक्त का पाठ किया। संध्या भजन के साथ ही रात्रि जागरण का अनुष्ठान भक्तिभाव से पूर्ण किया गया। अपनी आस्था में रमे साधक सत्य, शुचिता और साधना में लीन रहे और विशिष्ट शरद पूर्णिमा को अतिविशिष्ट बनाया। उल्लेखनीय है कि इस शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा भरणी नक्षत्र में रहा, जबकि लक्ष्मी योग भी बना हुआ रहा। यह संयोग धन-लाभ, मानसिक शांति और आरोग्य प्रदान करने वाला रहा। महिला साधकों ने अपने पति की दीर्घायु और परिवार के सुख के लिए रात्रि जागरण किया।

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