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आंख की रोशनी जाने के बावजूद 70 साल के यदु ने नहीं हारी हिम्मत

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। यह पंक्ति गोंदापुर के नेत्रहीन यदु चौधरी पर बिल्कुल सटीक बैठती है। आंख की रोशनी छीन जाने के बाद भी 70 वर्षीय यदु ने...

आंख की रोशनी जाने के बावजूद 70 साल के यदु ने नहीं हारी हिम्मत
हिन्दुस्तान टीम,नवादाThu, 21 Jun 2018 03:04 PM
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नवादा। हिन्दुस्तान संवाददाता

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। यह पंक्ति गोंदापुर के नेत्रहीन यदु चौधरी पर बिल्कुल सटीक बैठती है। आंख की रोशनी छीन जाने के बाद भी 70 वर्षीय यदु ने हिम्मत नहीं छोड़ी और आज भी पुश्तैनी कारोबार से जुड़कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। वे प्रतिदिन करीब 80 फीट उंचे ताड़ के पेड़ पर चढ़ते हैं और ताड़ी उतारकर पुष्तैनी धंधा करते हैं। एक बड़ी बात यह भी कि वे महज एक नहीं बल्कि सुबह-शाम मिलाकर 24 ताड़ के पेड़ पर चढ़ते हैं।

पत्नी का मिलता है सहयोग

यदु बताते हैं कि करीब 30 साल पहले बुधौल गांव के जंगल बेलदारी टोला में खजूर की ताड़ी उतार रहे थे। पेड़ पर चढ़े ही थे कि अचानक आंधी आई और संतुलन बिगड़ने से पेड़ से नीचे गिर गए। गंभीर चोट आने के चलते दोनों आंखों की रोशनी चली गई। काफी इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। रोशनी खत्म हो जाने के चलते कोई व्यापार या मजदूरी भी नहीं कर सकते थे। परिवार का भी भरण-पोषण करना था। बेटियों और पोतियों की शादी करनी थी। लिहाजा पुराने अनुभव के आधार पर पुश्तैनी कारोबार से जुड़ा रहना ही मुनासिब समझा। इस कार्य में पत्नी सुदामा देवी का पूरा सहयोग मिला। पत्नी प्रतिदिन सुबह-शाम हाथ पकड़कर घर से ताड़ के पेड़ के पास ले जाती है।

डर तो लगता है पर क्या करें

पत्नी सुदामा देवी कहती हैं कि इसी धंधे में पति की आंख की रोशनी चली गई, लेकिन आज भी पति को ताड़ के पेड़ पर चढ़ने की मजबूरी है। वे पेड़ पर चढ़ते हैं तो काफी डर भी लगता है, पर क्या करें। कोई विकल्प भी नहीं है, आखिर पापी पेट का सवाल है। इसी दो-तीन महीने की कमाई से घर चलाना पड़ता है। एक बेटा है, वह भी इसी कारोबार से जुड़ा है। इस महंगाई के दौर में एक सदस्य की कमाई से घर नहीं चल सकता है।

सरकारी मदद की है दरकार

वृद्ध दंपती को सरकारी मदद की दरकार है। अब तक महज दो बार ही वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ मिला है। नियमित मदद नहीं मिलने से घर का गुजारा चलना भी मुश्किल हो गया है। गांव के ही एक नेताजी ने एक साल पहले सरकारी मदद दिलाने का भरोसा दिलाकर चार सौ रुपये लिए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वृद्ध दंपती का कहना है कि नियमित सरकारी मदद मिलता तो बुढापा कट जाता।

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