जब नाश मनुष्य पर छाता तो पहले विवेक मर जाता
जब नाश मनुष्य पर छाता है तो पहले विवेक मर जाता है। मनुष्य को कोई भी काम सोच-समझकर करना चाहिए। ये बातें कथावाचक पंडित धीरज झा धर्मेश ने मंगलवार को चांदनी चौक के पास श्रीमद्भागवत कथा के दौरान...
जब नाश मनुष्य पर छाता है तो पहले विवेक मर जाता है। मनुष्य को कोई भी काम सोच-समझकर करना चाहिए। ये बातें कथावाचक पंडित धीरज झा धर्मेश ने मंगलवार को चांदनी चौक के पास श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कही। यह आयोजन धर्मेश राधे-कृष्ण शिष्य परिवार की ओर से हुआ था। चौथे दिन कथावाचक ने कहा कि कलयुग के आगमन से पूर्व प्रयाग में एक सभा हुई। इसमें सभापति भगवान शंकर थे। जब वे समाधि में बैठे उसी समय दक्ष प्रजापति का आगमन हुआ। सभी देवताओं ने अभिवादन किया पर भगवान शंकर समाधि में बैठे रहे। दक्ष ने बहुत भला-बुरा कहा। नन्दी ने भी प्रजापिता को श्राप दिया। भगवान भोलेनाथ को जब पता चला तो वे नंदी को समझाकर उस घटना को भूल गये। प्रजापिता ने बदले की भावना से यज्ञ का आयोजन किया। सभी देवता को आमंत्रण गया मगर शिव को आमंत्रित नहीं किया। भगवान शिव के मना करने पर सती पिता के घर यज्ञ में गई। यज्ञ स्थल पर भोलेनाथ का कोई स्थान नहीं देख वह आग में सती हो गई। सती के जले हुए शरीर को लेकर शंकर जब तांडव नृत्य करने लगे। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को विभाजित किया। जहां-जहां सती का अंग गिरा वह सिद्ध शक्तिपीठ से प्रसिद्ध हुआ। मौके पर उषा शर्मा, भारती शर्मा, इन्द्रमोहन झा भी थे।