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कांटी में शिक्षकों की पहल से दूसरे राज्यों की कला-संस्कृति से रूबरू हो रहे स्कूली बच्चे

कल हमलोग राकेश बिहारी सर से मिले थे। वे छत्तीसगढ़ में रहते हैं। आपको पता है छतीसगढ़ की एक कला है ढोकरा कास्टिंग। यह शिल्पकला वहां के आदिवासियों के कारण प्रसिद्ध है। अर्चना मैम से भी हम मिले हैं वे...

कांटी में शिक्षकों की पहल से दूसरे राज्यों की कला-संस्कृति से रूबरू हो रहे स्कूली बच्चे
अनामिका,मुजफ्फरपुरFri, 28 Sep 2018 05:33 PM
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कल हमलोग राकेश बिहारी सर से मिले थे। वे छत्तीसगढ़ में रहते हैं। आपको पता है छतीसगढ़ की एक कला है ढोकरा कास्टिंग। यह शिल्पकला वहां के आदिवासियों के कारण प्रसिद्ध है। अर्चना मैम से भी हम मिले हैं वे अररिया की रहने वाली हैं। फणीश्वरनाथ रेणु न्भी अररिया के ही हैं। गुरुवार को ये बातें बताने वाले कोई बड़े साहित्यकार या बुद्धिजीवि नहीं हैं बल्कि सरकारी स्कूल में पांचवी, छठी से लेकर आंठवीं तक में पढ़ने वाले ग्रामीण बच्चे हैं। अपने स्कूल में बैठकर दूसरे राज्यों की कला-संस्कृति से रूबरू होने वाले विवेक, शालिनी, अभिषेक, सलोनी समेत कई बच्चे आज इनसे मिलिये कार्यक्रम से ज्ञानार्जन कर रहे हैं। कभी साहित्यकर्मी तो कभी सामाजिककर्मी। कभी शिक्षाविद तो कभी रंगमंच से जुड़े कलाकार। कांटी के मिडिल स्कूल ढेमहा के बच्चे हर दिन किसी एक शख्सियत से मिलते हैं। आमने-सामने नहीं बल्कि मोबाइल फोन के जरिए। स्कूल के शिक्षकों की एक अनूठी पहल ‘इनसे मिलिए कार्यक्रम इन बच्चों में बदलाव का कारण बना है। चेतना सत्र में यहां हर दिन ‘इनसे मिलिए कार्यक्रम होता है। विभिन्न क्षेत्र से जुड़े लोगों से बच्चों की बात कराई जाती है।

बच्चों को रहता इंतजार, आज किनसे हैं हमें मिलना

प्रधानाध्यापक गोपाल फलक बताते हैं कि हमने प्रयोग के तौर पर इसे अगस्त में शुरू किया। पहले जिले के साहित्यकारों-अधिकारियों से बात कराई। अब तो बच्चों की फरमाइश होती है कि आज हमें किनसे मिलना हैं। नाम जानने और यह बताने पर कि वे साहित्यकार या लेखक हैं, बच्चे कविता-कहानी सुनाने की फरमाइश करते हैं। इससे कविता-कहानी के साथ वहां की साहित्य-संस्कृति और भौगोलिक स्थिति, विशेषता से भी बच्चे रूबरू हो रहे हैं। अब तक आर्ट एंड स्टेटिक विभाग की डायरेकटर दिल्ली निवासी डा. पवन सुधीर, हरियाणा की शिक्षाविद् सुलेखा भार्गव, दिल्ली के रंगकर्मी संतोष राणा, शिक्षाविद् कपिल गहलोत, अररिया की साहित्यकार अर्चना कुमारी समेत कई बच्चों से वार्ता की सूची में शामिल हो चुके हैं। डीपीओ एसएसए विनय कुमार कहते हैं कि यह पहल अनूठी है। इसने मॉडल का काम किया है। यहां के बच्चों के बदलाव को हम पूरे जिले में मॉडल रखते हुए सभी स्कूल को इसे अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे।

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