नये पैटर्न पर रिसर्च शुरू बेहतर परिणाम की आस
चमकी-बुखार पर मंथन कर रहे विशेषज्ञों ने इस बार बेहतर परिणाम पाने के लिए शोध का पैटर्न भी बदला है। बीमारी से प्रभावित इलाकों पर अधिक से अधिक फोकस है। पहली बार विशेषज्ञों की प्रारंभिक पड़ताल में मरने...
चमकी-बुखार पर मंथन कर रहे विशेषज्ञों ने इस बार बेहतर परिणाम पाने के लिए शोध का पैटर्न भी बदला है। बीमारी से प्रभावित इलाकों पर अधिक से अधिक फोकस है। पहली बार विशेषज्ञों की प्रारंभिक पड़ताल में मरने वाले बच्चों की माइटोकॉ्ड्रिरया फेल या शिथिल होने की बात सामने आयी है। इससे शोध को एक नई दिशा मिली है। इस बार के शोध में दूसरा महत्वपूर्ण पहलू जेनेटिक्स इफेक्ट भी है। विशेष बच्चों के अनुवांशिक पहलुओं को भी गंभीरता से देख रहे हैं।
शोध की दिशा बदलने से विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस बार अज्ञात बीमारी की पहेली सुलझ सकती है। ग्लूकोज की कमी और गर्मी के बीच विशेषज्ञों को आशंका है कि बच्चों में कुछ आनुवंशिकी कारणों से भी यह बीमारी हो रही है। माइटोकॉ्ड्रिरया की समस्या दो एक साल तक के बच्चों में अमूमन नहीं मिलती है, मगर एईएस के केस में लगभग सौ ऐसे बच्चे आये हैं जो इस समस्या के शिकार थे। इस कॉमन समस्या को ध्यान में रख जब विशेषज्ञों ने इलाज की दिशा बदली तो लगभग 40 बच्चों की जान भी बचा ली गई थी। एसकेएमसीएच के डॉक्टरों के साथ ही पटना व दिल्ली के विशेषज्ञ लगातार मंथन में जुटे हैं। पहली बार इलाज के दौरान बच्चों के सभी ऑर्गेन की पैथोलॉजि जांच भी की गयी है। इसी में माइटोकॉ्ड्रिरया जैसी कॉमन समस्या सामने आयी।
बीमारों के सैंपल की कई स्तर पर हो रही जांच
टीम के प्रमुख सह राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के सलाहकार डॉ. अरुण कुमार सिन्हा की अनुशंसा पर पूरी जांच चल रही है। उन्होंने सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एवं निदान संस्थान (सीडीएफएन) हैदरबाद को मसल्स के सैंपल भेजे हैं । कई बच्चों के सैंपल की दिल्ली में बायोप्सी कराई जा रही है। एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ. एसके शाही ने बताया कि माइटोकोंड्रिया का फेल होना और अमोनिया का डिटॉक्सीफाई(विष विहीन) न होना जैसी समस्या पकड़ी गयी है। इसको देखते हुए बच्चों का डीएनए टेस्ट भी आगे संभव है। इसके लिए पहल हो चुकी है।