आठ जिलों में फंड के बाद भी नहीं खुलीं पीआईसीयू
चमकी-बुखार से लड़ने के लिए सरकार ने चाहे जो भी कोशिश की हो, लेकिन स्वास्थ्य महकमे ने किसी भी योजना की हवा निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बीएमएसआईसीएल को एईएस प्रभावित सभी 15 जिलों में पीआईसीयू...
चमकी-बुखार से लड़ने के लिए सरकार ने चाहे जो भी कोशिश की हो, लेकिन स्वास्थ्य महकमे ने किसी भी योजना की हवा निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बीएमएसआईसीएल को एईएस प्रभावित सभी 15 जिलों में पीआईसीयू खोलने के लिए बजट से अधिक 11.10 करोड़ रुपये दिए गए। इसके अलावा उपकरण खरीदने के लिए प्रति पीआईसीयू डेढ़-डेढ़ करोड़ मिले थे।
इन जिलों में पीआईसीयू खोलने के लिए 9.79 करोड़ का ही बजट बनाया गया था। बजट से अधिक राशि मिलने के बावजूद पीआईसीयू नहीं खुलीं और वर्ष 2016 में इसी राशि से मात्र सात जिलों में पीआईसीयू खोलने की अनुमति देते हुए निर्माण पूरा कराया गया। वहीं, बचे आठ जिलों का मामला अटक गया। नतीजा यह रहा कि उत्तर बिहार के कई जिलों के परिजन चमकी-बुखार के इलाज के लिए बच्चों को लेकर एसकेएमसीएच की दौड़ लगा रहे हैं।
कैग की रिपोर्ट से मेडिकल सुविधाओं के लिए निर्धारित एजेंसी की लापरवाही का मामला उजागर हुआ है। महालेखाकार ने बताया है कि बिहार में एईएस से बच्चों को बचाने के लिए विभाग ने गंभीरता नहीं दिखायी। ऑडिट के क्रम में यह बात सामने आयी कि वर्ष 2014 में एईएस प्रभावित प्रत्येक जिले में एक पीआईसीयू खोलने का निर्णय लिया गया था। प्रति पीआईसीयू 65.50 लाख रुपये की राशि सरकार से मांगी गई। सरकार ने इस मांग से कहीं अधिक 11.10 करोड़ की राशि दी। लेकिन, दो साल तक इस राशि को खजाने में पड़ा रहने दिया गया। अगस्त 2016 में पीआईसीयू के लिए फिर से बजट तैयार किया गया तो पूर्व में मिली 11.10 करोड़ की राशि से महज सात जिलों में पीआईसीयू के निर्माण को हरी झंडी दी गई। यानी दो साल की देरी के कारण प्रत्येक पीआईसीयू के निर्माण का खर्च 65.50 लाख से 92.50 लाख हो गया।