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लोकसभा चुनाव 2019 : उत्तर बिहार के कई गांव झेल रहे पलायन की पीड़ा

गौरवशाली अतीत को समेटे मिथिलांचल की मुट्ठी में अब रेत ही रेत दिखती है। जीवनदायिनी कही जाने वाली नदियों ने जहां खेती-किसानी को दूभर बनाया वहीं रोजी-रोजगार की तलाश में गांव के गांव खाली हो रहे हैं। दो...

लोकसभा चुनाव 2019 :  उत्तर बिहार के कई गांव झेल रहे पलायन की पीड़ा
हिन्दुस्तान टीम,मुजफ्फरपुरMon, 22 Apr 2019 05:05 PM
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गौरवशाली अतीत को समेटे मिथिलांचल की मुट्ठी में अब रेत ही रेत दिखती है। जीवनदायिनी कही जाने वाली नदियों ने जहां खेती-किसानी को दूभर बनाया वहीं रोजी-रोजगार की तलाश में गांव के गांव खाली हो रहे हैं। दो जून की रोटी के जुगाड़ में गांव के गांव दिल्ली, मुंबई, पंजाब और गुजरात की राह पकड़ लेते हैं। यह स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है। सरकार के पास पलायन को लेकर कोई आंकड़ा नहीं है जबकि गैर सरकारी संगठनों के सर्वे की मानें तो जिले में दस से पंद्रह फीसदी अर्थात साढ़े चार से पांच लाख लोग रोजी-रोटी के लिए परदेस में रहते हैं। मुजफ्फरपुर के औराई व कटरा प्रखंडों के साथ जैसे ही आगे बढ़ते जाएंगे दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, सुपौल, सहरसा और कमोबेश पूरा कोसी क्षेत्र इस त्रासदी को भुगत रहा है। स्थिति चिंताजनक इसलिए भी कही जा सकती है।

सिर्फ सौ घरों में ही हैं लोग

झंझारपुर लोस क्षेत्र के रैयाम गांव में 300 परिवार रहते हैं। वहां से गुजर रहे बलराम पासवान ने बताया कि मुश्किल से सौ घरों में लोग हैं। बाकी में ताले लगे हैं। बलराम पासवान (65) ने बताया वे खुद हर सुबह-शाम चूल्हा फूंकते हैं। बेटा साथ चलने को कहता है मगर अपनी मिट्टी का मोह जाने नहीं देता। मिथिलांचल में न तो बलराम अकेला है और न ही यह गांव अकेला है। यहां हर गांव में आपको सैकड़ों बलराम मिलेंगे और हर प्रखंड में दर्जनों रैयाम गांव।

यहां भी काम मिलता तो मुंबई नहीं जाता

फुलपरास के कुसमार के युवक इमरान ने बताया वो अपने सभी भाइयों के साथ मुंबई में रहता है। मोटर पार्ट्स का काम करता है। मुंबई भले ही चमक-दमक वाला हो मगर मजा नहीं आता है । अगर यहां भी कोई फैक्ट्री होती या छोटा-मोटा काम मिल जाता तो फिर मुंबई नहीं जाते। 10-15 हजार से अधिक कमाई नहीं होती है।

10-12 लाख लोग जाते हैं बाहर

बिहार सरकार और यूनीसेफ के साथ पलायन पर काम करने वाली संस्था बिहार सेवा समिति का आंकड़ा चौंकाने वाला है। समिति के सचिव विनोद कुमार ने बताया मिथिलांचल में सबसे अधिक कमला,कोसी और भास नदी के तराई वाले इलाकों से लोग रोजी-रोटी कमाने दिल्ली-मुंबई जाते हैं। मधुबनी और दरभंगा के कुछ इलाकों में यह आंकड़ा आठ से दस लाख के करीब है। श्री कुमार के अनुसार हर साल यह संख्या घटती-बढ़ती रहती है। औसत संख्या यही है। इन नदियों के किनारे वाले कई गांव खाली हो जाते हैं। बस बूढ़े और बच्चे बच जाते हैं। उनकी संस्था यह रिपोर्ट सरकार को भी सौंपती है। उसके आधार पर सरकार काम भी करती है।

मतदान प्रतिशत को लेकर चिंता

अरेर, फुलपरास, बेनीपट्टी, केवटा सहित कई गांवों के बूथों पर जितने वोटर हैं, उसका एक चौथाई मतदान भी नहीं होता है । दलितों और अति पिछड़ों के बूथों पर स्थिति और चिंताजनक है। शिवैन पासवान ने कहा कि इस बार एक नेता जी होली के बाद बाहर जाने ही नहीं दिया। यहीं सड़क में तीनों भाइयों को काम दिला दिया। कहा, वोट के बाद चले जाना।

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