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जीतेगा गांव हारेगा कोरोना: कोरोना से बचा रहा तो बिगड़ी बना लेगा फकुली-केशरावां

मुजफ्फरपुर की दक्षिणी सीमा पर स्थित फकुली-केशरावां गांव में कोरोना संक्रमित के प्रवेश को लेकर लोगों के कान खड़े हैं। फकुली गांव के बीच से मुजफ्फरपुर-पटना फोरलेन गुजरता है। दिल्ली-पंजाब से साइकिल,...

जीतेगा गांव हारेगा कोरोना: कोरोना से बचा रहा तो बिगड़ी बना लेगा फकुली-केशरावां
मुजफ्फरपुर। विभेष त्रिवेदीThu, 30 Apr 2020 01:47 PM
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मुजफ्फरपुर की दक्षिणी सीमा पर स्थित फकुली-केशरावां गांव में कोरोना संक्रमित के प्रवेश को लेकर लोगों के कान खड़े हैं। फकुली गांव के बीच से मुजफ्फरपुर-पटना फोरलेन गुजरता है। दिल्ली-पंजाब से साइकिल, बाइक व पैदल आ रहे लोगों को देखकर ग्रामीण चौकस हो जाते हैं। उन यात्रियों में कोरोना संक्रमित होने की आशंका से गांव वाले सहमे हैं। मुखिया सुनील कुमार ने बताया कि फकुली चेकपोस्ट पर सड़क सील की गई है, लेकिन पैदल और साइकिल सवार निकल जाते हैं। गांव के लोगों के स्वास्थ्य पर नजर रखी जा रही है। राहत की बात यह है कि फकुली चौक के सभी होटल व दुकानें बंद हैं और यहां किसी बाहरी को रुकने नहीं दिया जाता है। मुखिया कहते हैं कि यदि बाहर से गांव में कोरोना संक्रमित का प्रवेश नहीं हो तो गांव के लोग अपनी रोजी-रोटी का प्रबंध करते रहेंगे। शाम में हाट में भीड़ उमड़ने से लॉकडाउन टूटना खतरनाक हो जाता है।

मुंह चिढ़ाती है गंडक नहर
केशरावां-फकुली से बीच से गुजरने वाली गंडक नहर मुंह चिढ़ाती है। पिछले 45 वर्षों में कभी नहर से सिंचाई नहीं हुई। फकुली स्टेट बोरिंग से कुछ हिस्सों में सिंचाई होती है। फकुली के युवा किसान सूरजकांत कहते हैं कि आंधी-पानी और ओलावृष्टि से फसलें अंतिम समय में बर्बाद हुई हैं, लेकिन असली चिंता कोरोना की है। गांव में मेहनती लोगों के सामने रोजी-रोटी की समस्या नहीं है। अगर बीमारी से बचे रहे तो ओलावृष्टि से हुए नुकसान की भरपाई अगली फसलों से कर लेंगे।
 दूध उत्पादन में अव्वल
गांव के घर-घर में मवेशी पाले जाते हैं। रोजाना 1000 लीटर से अधिक दूध का उत्पादन होता है। करीब 500 लीटर दूध डेयरी भेजे जाते हैं। इसके अलावा फकुली से रजला-गोरौल तक की दुकानों में भी 200 लीटर दूध की आपूर्ति होती थी, जो लॉकडाउन में बंद है। सूरजकांत ने बताया कि ओलावृष्टि से हरी सब्जियों व तंबाकू को नुकसान हुआ। बारिश से गेहूं की फसल अंतिम समय में बर्बाद हुई, लेकिन खेतों में खीरा, भिंडी, करैला, घिउरा, प्याज और कद्दू की फसलें हैं। मक्का की फसल से भरपाई करेंगे।

जीती बाजी हारे
केशरावां के किसान उमेश चंद्र मिश्रा बताते हैं कि गांव के लोग व्यापक पैमाने पर खेती करते हैं। पूरे केशरावां गांव के खेतों में फसलें लहलहा रही थीं, लेकिन मौसम की वजह से हम जीती बाजी हार गए। तंबाकू-गेहूं को नुकसान हुआ है। बारिश से गेहूं के दाने कमजोर हो गए। तंबाकू कटने के बाद उन खेतों में मक्का की फसलें बहुत अच्छी हैँ। किसान प्याज व हरी सब्जियों की खेती में व्यस्त हैं।

 

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