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लाश गोद में उठाने से ज्यादा मुश्किल था पीड़ित बच्चियों का दर्द सुनना

मैंने कई जघन्य अपराधों का अनुसंधान किया है। मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड अब तक की वारदातों से अलग है। यह अजीब वारदात है! मैं घटना स्थल से लाश को भी गोद में उठायी, लेकिन बालिका गृह की बच्चियों के दर्द...

लाश गोद में उठाने से ज्यादा मुश्किल था पीड़ित बच्चियों का दर्द सुनना
हिन्दुस्तान टीम,मुजफ्फरपुरWed, 01 Aug 2018 04:36 PM
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मैंने कई जघन्य अपराधों का अनुसंधान किया है। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड अब तक की वारदातों से अलग है। यह अजीब वारदात है! मैं घटना स्थल से लाश को भी गोद में उठायी, लेकिन बालिका गृह की बच्चियों के दर्द बयान में दर्ज करना बहुत कष्टदायक था। ये बातें मुजफ्फरपुर महिला थाना की अध्यक्ष ज्योति कुमारी ने बालिकागृह कांड की फाइलें सीबीआई को सौंपने के बाद ‘हिन्दुस्तान द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में कहीं। महिला थाना अध्यक्ष ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2009 में बिहार पुलिस की नौकरी ज्वाइन की। नौ वर्षों के कार्यकाल में महिलाओं पर अत्याचार के कई कांडों की जांच की। प्राय: दो-तीन दिनों में घटना स्थल के प्रत्यक्षदर्शियों व पीड़ितों के बयान लेकर आगे का अनुसंधान शुरू करती थीं। बालिका गृह कांड में पीड़िताओं के बयान लेने की प्रक्रिया लंबी चली और उनकी आपबीती सुनते समय बहुत गुस्सा आता था। एक महिला अधिकारी होने के नाते ज्योति कुमारी के लिए पिछले दो महीने का काम ज्यादा मुश्किल था।

रक्षक बन जाते थे भक्षक

महिला थाना अध्यक्ष के लिए सर्वाधिक चौँकाने वाली बात यह थी कि बेहसारा और लाचार बच्चियों के रक्षक ही भक्षक बन जाते थे। पूछताछ के दौरान पीड़ित लड़कियों ने बताया कि जब काउंसिलिंग के समय उनके साथ जुर्म सारी हदें पार करता था। दिन में उनके साथ अक्सर ‘गलत काम तब होता था, जब कोई काउंसिलिंग के लिए आता था। संकटग्रस्त लड़कियां अक्सर अवसाद की शिकार होती हैं। उन्हें सदमें से उबारते हुए मानिसक ताकत और हौसला देने के लिए नियमित काउंसिलिंग का प्रावधान है, परन्तु काउंसिलिंग के बजाय उनके साथ यौन शोषण होता था।

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