मनुष्य के लिए त्याग व आत्मानुशासन का होना जरूरी
संस्कृत की मूल अवधारणा में ही त्याग की प्रवृत्ति है। मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह स्वयं पर आत्मानुशासन लागू करें। जीवन में विधि व निषेध दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। ये बातें गुरुवार को संपूर्णानंद...
हिन्दुस्तान टीम मुजफ्फरपुरThu, 10 Aug 2017 09:41 PM
संस्कृत की मूल अवधारणा में ही त्याग की प्रवृत्ति है। मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह स्वयं पर आत्मानुशासन लागू करें। जीवन में विधि व निषेध दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। ये बातें गुरुवार को संपूर्णानंद संस्कृत विवि वाराणसी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. राजीव रंजन सिंह ने कही। वे एमपी सिन्हा साइंस कॉलेज में संस्कृत विभाग की ओर से ‘संस्कृत साहित्येषु व्यक्ति निर्माणेन राष्ट्र निर्माण पर आयोजित संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे। बीआरए बिहार विवि के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. इंद्रनाथ झा ने कहा कि संस्कृत पूरे विश्व की समृद्धि की बात करता है। अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य प्रो. शफीक आलम ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत की प्राचीनतम भाषा है। विषय प्रवेश कराते हुए कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. अमरेंद्र ठाकुर ने कहा कि संस्कृत भारत की सांस्कृतिक भाषा रही है। संगोष्ठी का संचालन डॉ. शेखर शंकर मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. जेपीएन देव ने किया। मौके पर प्रो. श्रीप्रकाश पांडेय, प्रो. अनिल कुमार सिंह, डॉ. अश्विनी कुमार अशरफ, प्रो. ज्योति नारायण सिंह, डॉ. रामनरेश सिंह, डॉ. अमरनाथ शर्मा, डॉ. राज कुमार सिंह, विश्वनाथ पांडेय, डॉ. आलोक रंजन त्रिपाठी, डॉ. अब्दुल बरकात आदि मौजूद थे।
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