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एम्स में ठनी रही मौत से जंग और मुजफ्फरपुर में थमी रही लोगों की सांसें

उधर एम्स में कालजयी पुरुष की मौत से ठनी हुई थी और इधर लोगों की सांसे थमी हुई थी। हर कोई टीवी से चिपका था। हर दूसरे मिनट पर स्क्रीन पर आता जल्द जारी होगा नया हेल्थ बुलेटिन और लोगों का दिल धक से करता।...

एम्स में ठनी रही मौत से जंग और मुजफ्फरपुर में थमी रही लोगों की सांसें
हिन्दुस्तान टीम,मुजफ्फरपुरFri, 17 Aug 2018 02:48 PM
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उधर एम्स में कालजयी पुरुष की मौत से ठनी हुई थी और इधर लोगों की सांसे थमी हुई थी। हर कोई टीवी से चिपका था। हर दूसरे मिनट पर स्क्रीन पर आता जल्द जारी होगा नया हेल्थ बुलेटिन और लोगों का दिल धक से करता। सवेरे..दोपहर और फिर शाम। शाम होते की काल अपना चक्र चला दिया और 5.45 में टीवी पर चल गया ब्रेकिंग .... नहीं रहे अटल। फिर तो बस अंधेरा, गम,आंसू, यादों का अंबार और भावनाओं का ज्वार।

पूर्व प्रधानमंत्री की सेहत कई वर्षों से खराब थी। एम्स में भर्ती हुए भी दो महीनों से अधिक हो गए थे। मगर पिछले दो दिनों से पूरा देश महज एक मिनट के लिए उन्हें अपने से दूर जाने देना नहीं चाह रहा था। बुधवार की शाम से स्थिति नाजुक की जो मनहूस खबर आई उसकी परिणति अंतिम यात्रा से हुई। गुरुवार को तो सवेरे से पूरा देश बेचैन था। टीवी पर उसके अलावा कोई दूसरी खबर नहीं थी। दिन के दस बजे और बारह बजे के हेल्थ बुलेटिन में भी उनकी स्थिति बेहद नाजुक बताई गई। मगर जैसे ही यह बताया गया कि अगला बुलेटिन अब शाम साढ़े सात बजे आएगा। लोगों ने राहत की सांस ली। मगर महज आधे घंटे के बाद खबर आई कि अगला बुलेटिन साढ़े सात बजे नहीं ढ़ाई बजे आएगा। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दोबार एम्स आए लोगों के मन में कुछ अनहोनी की आशंका घर कर गई।

इधर शहर में जगह-जगह उनकी सलामती के लिए हवन और पूजा-अर्चना का दौर चल रहा था। हर कोई बस यही सोच रहा था कि अगले बुलेटिन में कोई अच्छी खबर मिले। लोगों को सबसे अधिक परेशान कर रही थी टीवी का वह स्क्रॉल —अगला बुलेटिन बस थोड़ी ही देर में। ढ़ाई पार कर गया। तीन बजे गए। चार बज गए। पांच भी बज गए। एम्स में मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के जमावड़े से लोग कुछ अनहोनी का अंदाजा जरूर लगा रहे थे। एक मिनट के लिए कोई टीवी से हटने को तैयार नहीं था। जीवन के संघर्षों से लड़ने की प्रेरणा देती और मौत को चुनौती देती वाजपेयी जी की कालजयी कविताएं लगातार लोगों को संबल दे रही थी कि जंग अभी नहीं हारेंगे। मगर काल ने भी अपना मन बना लिया था। उसे भी शाम ढ़लने का इंतजार था।

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