आम आदमी बनकर जनता के लिए कलम चलाते रहे बाबा नागार्जुन
कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास,कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास। कई दिनों तह लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त, कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त। यह सिर्फ उनका लेखन नहीं बल्कि उनका...
कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास,कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास। कई दिनों तह लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त, कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त। यह सिर्फ उनका लेखन नहीं बल्कि उनका व्यक्तित्व था जो आम आदमी से जुड़ा था। बाबा नागार्जुन के करीबी रहे साहित्यकार शशिकांत झा यह बताते हुए पुराने दिनों के याद में खो जाते हैं जब वे बाबा नागार्जुन के साथ एक भूमि आंदोलन से जुड़े थे। वे बताते हैं कि प. चम्पारण में एक भूमि आंदोलन के दौरान मैं उनके करीब आया। उस आंदोलन के दौरान ही मुझे पता चला कि वे कितने बड़े जनकवि है। उनकी कविताएं हम वहां सुनते थे। जनआंदोलन और जनकवि, जब तक जिएं आम आदमी बनकर आम आदमी के लिए।
साहित्यकार डॉ. संजय पंकज कहते हैं कि उनके काव्य में अब तक की पूरी भारतीय काव्य-परंपरा ही जीवंत रूप में उपस्थित देखी जा सकती है। उनका कवि-व्यक्तित्व कालिदास और विद्यापति जैसे कई कालजयी कवियों के रचना-संसार के गहन अध्ययन, बौद्ध एवं मार्क्सवाद जैसे बहुजनोन्मुख दर्शन के व्यावहारिक अनुगमन तथा सबसे बढ़कर अपने समय और परिवेश की समस्याओं, चिन्ताओं एवं संघर्षों से प्रत्यक्ष जुड़ाव तथा लोकसंस्कृति एवं लोकहृदय की गहरी पहचान से निर्मित है। साहित्यकार डॉ. रेवती रमण कहते हैं कि विद्यापति के बाद मिथिला जनपद के वे सबसे बड़े कवि हैं। क्रांतिकारी यर्थाथ के साथ वे स्वभाविक कवि भी थे। प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. सुधांशु कुमार बाबा नागार्जुन की कविता और मुजफ्फरपुर से उनके लगाव पर कहते हैं कि महाकवि नागार्जुन की कविताएं जरूरतों से उपजी कविताएं हैं। उनका लेखन सोद्देश्य है। उनकी कविताओं में जो ध्वन्यात्मकता है। एक व्यंग्य है। उस व्यंग्य में जो भविष्यवाचकता है ‘ॐ हमेशा हमेशा राज करेगा मेरा पोता, यह प्रजातंत्र के आवरण में लिपटा हुआ राजतंत्र की दुर्गंधयुक्त अभिव्यक्ति है। इसे आज की शासन प्रणाली में देखा जा सकता है।
बिना लागपलेट के कहते थे अपनी बात
कवयित्री डॉ. इंदु सिन्हा कहती हैं कि वह बिना लागलपेट के अपनी बात कहते थे। गीतकार कुमार राहुल कहते हैं कि नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिकतम कवि हैं। कवयित्री पूनम सिन्हा कहती हैं कि भाषा पर बाबा का एकाधिकार है। देसी बोली के ठेठ शब्दों से लेकर संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय पदावली तक उनकी भाषा के अनेक स्तर हैं। बाबा ने छंद से भी परहेज नहीं किया। बल्कि कविताओं में क्रांतिकारी ढंग से इस्तेमाल करके दिखा दिया। बाबा छंदों का करते थे चमत्कारिक प्रयोग कवि श्यामल श्रीवास्तव कहते हैं कि बाबा की कविताओं की लोकप्रियता का एक आधार उनके द्वारा किया गया छंदों का सधा हुआ चमत्कारिक प्रयोग भी है।