फिर संघर्ष करते रह जाएंगे सन ऑफ मल्लाह? मुकेश सहनी के ट्वीट से सीट संकट का संकेत
संक्षेप: मुकेश सहनी के एक ट्वीट ने महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर गहरे संकट का संकेत दिया है। सीट के साथ-साथ डिप्टी सीएम पद मांग रहे सहनी 2020 में विपक्ष के सीट शेयरिंग ऐलान के कार्यक्रम से निकलकर एनडीए के साथ गए थे।

महागठबंधन में दूसरी पारी खेल रहे विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी ने शुक्रवार की शाम एक ट्वीट करके विपक्षी दलों के अलायंस में सीट बंटवारे को लेकर गहराए संकट का संकेत दिया है। खेत की मेड़ पर चलते, नाव पर सवार जाते और औरतों से आशीर्वाद लेते अपने फोटो का एक कोलाज बनाकर मुकेश सहनी ने बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में लिखा- “मैंने संघर्ष का रास्ता चुना है!”। मुकेश सहनी 60 सीटों की मांग से 30 और फिर 14 या 44 तक आ चुके हैं। सन ऑफ मल्लाह के नाम से भी मशहूर सहनी के लिए सीटों की संख्या से ज्यादा उप-मुख्यमंत्री कैंडिडेट के तौर पर उनके नाम की घोषणा महत्वपूर्ण है, लेकिन इस पर इंडिया गठबंधन के घटक दलों की सोच एक नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि मुकेश सहनी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव से कम, कांग्रेस से ज्यादा परेशान हैं। कांग्रेस ने इस बार तेजस्वी को भी तनाव दे रखा है, लेकिन दोनों का गठबंधन ही टूट जाए, ऐसा खतरा फिलहाल पैदा नहीं हुआ है। कांग्रेस चुनाव में सीएम या डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित करने के लिए तैयार नहीं हो रही है। राजद और दूसरे सहयोगी दल बार-बार तेजस्वी का नाम ले रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी समेत कांग्रेस के तमाम नेता इधर-उधर की बातें करके इस सवाल के सीधे जवाब को टाल रहे हैं। डिप्टी सीएम घोषित नहीं होने पर सहनी महागठबंधन में रहने या छोड़ने का फैसला भी ले सकते हैं।
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स्थिति-परिस्थिति एक बार फिर 2020 के विधानसभा चुनाव जैसी बन रही है। तब मुकेश सहनी सीट बंटवारे के लिए बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में तेजस्वी यादव पर पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाकर निकल गए थे और बाद में एनडीए के साथ लड़े। बीजेपी ने अपने कोटे की सीटों से 11 सीट मुकेश सहनी को दिए, कुछ सीटों पर कैंडिडेट भी दिए। सहनी की पार्टी से चार लोग जीते थे, लेकिन बाद में एक के निधन के बाद उप-चुनाव में राजद ने सीट छीन ली। उत्तर प्रदेश में 2022 का चुनाव लड़ने के बाद सहनी को मंत्री पद से हटाया गया और उनके बचे विधायकों ने बीजेपी में वापसी कर ली।
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वैसे, 2020 की तुलना में हालात इस बार अलग हैं। तब एनडीए चिराग पासवान की बगावत का सामना कर रही थी, लेकिन अब वो साथ हैं। एनडीए का सीट बंटवारा भी लगभग तय हो चुका है और आज शाम उसकी घोषणा होने जा रही है। ऐसे में मुकेश सहनी अगर महागठबंधन की नाव छोड़ते हैं तो उनके पास छोटे-मोटे नाव से ताल-मेल करने का विकल्प ही बचा होगा। असदुद्दीन ओवैसी हों, तेज प्रताप यादव हों या कोई और। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता और गृह मंत्री अमित शाह को अपना गुरु बताने वाले सहनी को बीजेपी आखिरी मौके पर 2020 की तरह कोई इमरजेंसी ऑफर देकर वापस खींच ले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।





