नीतीश के नेतृत्व में महागठबंधन को मिला प्रचंड बहुमत, साल 2015 में जदयू-राजद और कांग्रेस थे साथ
नीतीश कुमार ने 115 विधायकों के बावजूद केवल 101 सीटों पर चुनाव लड़ा। इतनी ही सीट राजद को मिली, जबकि कांग्रेस को 41 सीटें दी गयी। जदयू के कई विधायकों का टिकट कटा। पिछली बार जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था।

वर्ष 2013 में भाजपा से अलग होने के बाद 2015 तक गैर एनडीए दलाें के समर्थन से जदयू की सरकार चली। 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में गैर एनडीए दलों का महागठबंधन बना। इसमें राजद और कांग्रेस शामिल थे। दूसरी तरफ भाजपा के नेतृत्व में लोजपा, हम और रालोसपा का एनडीए गठबंधन था। दोनों के बीच जोर आजमायीश हुई। महागठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला।
2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत से भाजपा का उत्साह चरम पर था। उसे लग रहा था कि हर हाल में सरकार उसकी ही बनेगी। उधर, नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन को अपनी वापसी का पूरा भरोसा था। नीतीश कुमार ने 115 विधायकों के बावजूद केवल 101 सीटों पर चुनाव लड़ा। इतनी ही सीट राजद को मिली, जबकि कांग्रेस को 41 सीटें दी गयी। जदयू के कई विधायकों का टिकट कटा। पिछली बार जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
भाजपा वर्ष 2010 में 102 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस बार पूरे उत्साह में उसने 157 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। जबकि, लोजपा को 42, रालोसपा को 23 व हम को 21 सीटें मिलीं। भाजपा के उत्साह का आलम यह था कि मुख्यमंत्री पद के कई अघोषित उम्मीदवार भी हो गए। इससे पार्टी के अंदर गुटबाजी शुरू हो गयी। इन सबका यह मानना था कि सूबे में एनडीए की ही सरकार बनेगी। पर चुनाव परिणाम ने एनडीए के तमाम मंसूबों को ध्वस्त कर दिया। उसे महज 58 सीटों से संतोष करना पड़ा। भाजपा केवल 53 सीट जीत सकी। सारे सहयोगी दल मिलकर केवल पांच सीट ला सके।
उधर, महागठबंधन को शानदार सफलता मिली। इसने 178 सीटें जीतीं। यही नहीं इसे 41 फीसदी वोट भी मिले। जदयू ने 2014 के लोकसभा चुनाव की बड़ी असफलता को पीछे छोड़ते हुए शानदार जीत हासिल की। उसे 71 सीटें मिलीं। हालांकि उसे पिछले विधानसभा की तुलना में 41 सीटों का नुकसान हुआ। लेकिन वह राजद के बाद सबसे बड़ी पार्टी बना।
उधर, जदयू और कांग्रेस के साथ से राजद ताकतवर बनकर उभरा। उसने 2010 विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार को पीछे छोड़ते हुए 80 सीटें जीतीं। कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं। इस जीत के बाद महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने। पहली बार जीते लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रेम कुमार विपक्ष के नेता बने।
2017 में फिर बनी एनडीए की सरकार
नीतीश कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो गए। 28 जुलाई 2017 को उनके नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी। सुशील मोदी फिर से उपमुख्यमंत्री बनाये गये। तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता बने। नीतीश कुमार केे नेतृत्व में एनडीए सरकार ने 2020 तक का अपना शेष कार्यकाल पूरा किया।
भाजपा की वरिष्ठ नेता डॉ. प्रेम कुमार बताते हैं कि बिहार में एनडीए ही स्वाभाविक गठबंधन है। नीतीश कुमार के साथ भाजपा भी खुद को सहज महसूस करती है और राज्य की जनता भी इनको साथ देखना चाहती है। इसीलिए दो बार महागठबंधन की सरकार बनने के बाद भी वह वास्तविक आकार नहीं ले पाया। अंतत: जनता की मांग पर एनडीए की ही सरकार बिहार में बनी। नीतीश कुमार ने खुद इसे कई बार स्वीकार किया है। प्रेम कुमार कहते हैं-दरअसल, जनता केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास कार्यों से खुश है।
20 महीने से चली आ रही महागठबंधन सरकार का अंत हो गया
सरकार ने कामकाज तो प्रारंभ किया, लेकिन कुछ ही दिनों के बाद जदयू और राजद के संबधों में खटास आने लगी। बताया गया कि लालू प्रसाद का सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप बढ़ रहा था। इससे नीतीश कुमार नाराज थे। उधर, भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी रोज भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लालू परिवार को घेरने लगे। उन्होंने तेजस्वी यादव पर भी कई गंभीर आरोप लगाए। वे लगातार आक्रामक रहे। इससे नीतीश कुमार असहज हो गए। उन्होंने तेजस्वी यादव को इन आरोपों पर सफाई देने को कहा। पर, ऐसा नहीं हो पाया। इसके बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ने का फैसला किया। इसके साथ ही 20 महीने से चली आ रही महागठबंधन सरकार का अंत हो गया।





