कला में प्रयुक्त प्रतीक केवल सजावट नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक मूल्यों के संवाहक होते हैं
संक्षेप: मधुबनी के मिथिला चित्रकला संस्थान में 21 एवं 22 अगस्त 2025 को 'कला में प्रतीकों का महत्व' विषय पर दो दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की गई। मुख्य व्याख्याता अरविंद ओझा ने भारतीय कला परंपरा में...
मधुबनी, नगर संवाददाता। मिथिला चित्रकला संस्थान, मधुबनी में 21 एवं 22 अगस्त 2025 को ''कला में प्रतीकों का महत्व'' विषय पर दो दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन संस्थान के बहुउदेशीय सभागार में किया गया। व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन 21अगस्त को पूर्वाहन 11:00 बजे दीप प्रज्वलन संस्थान के प्रभारी प्रशासी पदाधिकारी नीतीश कुमार, सभी आचार्यों एवं अतिथि व्याख्याता के द्वारा किया गया। संस्थान के वरीय आचार्य पद्मश्री बौआ देवी के द्वारा व्याख्याता अरविंद ओझा को पाग, दोपटा एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। तत्पश्चात व्याख्यान श्रृंखला के प्रारंभ में संस्थान के प्रभारी प्रशासी पदाधिकारी नीतीश कुमार के द्वारा संबोधन प्रारंभ कर छात्र-छात्राओं को व्याख्यान श्रृंखला के महत्व को समझाते हुऐ बताया गया कि वे अपनी कला साधना में प्रतीकों के महत्व को समझें और उन्हें आधुनिक दृष्टिकोण से भी जोड़ने का प्रयास करें।
उन्होंने यह भी बताया कि मिथिला चित्रकला की विशिष्टता इसी में है कि इसमें प्रयुक्त प्रत्येक रेखा, आकृति और प्रतीक का एक गहरा अर्थ होता है। इन प्रतीकों के माध्यम से कलाकार न केवल अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है, बल्कि समाज को संदेश भी देता है। संस्थान के कनीय आचार्य प्रतीक प्रभाकर के द्वारा अरविंद ओझा के संक्षिप्त परिचय में बताया कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय से कला और मानविकी में शिक्षा प्राप्त की और टेक्सटाइल डिजाईन में स्नातकोत्तर डिग्री निफ्ट, नई दिल्ली से प्राप्त किया। दोपरांत प्रख्यात कला विशेषज्ञ एवं कला लेखक अरबिंद ओझा (दिल्ली) ने मुख्य व्याख्याता के रूप में विद्यार्थियों एवं कला-प्रेमियों को संबोधित किया। उन्होंने भारतीय कला परंपरा में प्रतीकों की ऐतिहासिक भूमिका, मिथिला चित्रकला में प्रयुक्त प्रतीकों की विशिष्टता तथा समकालीन कला में उनके महत्व पर विस्तृत विचार प्रस्तुत किए। अपने व्याख्यान में श्री ओझा ने कहा कि "कला में प्रयुक्त प्रतीक केवल सजावट नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों के संवाहक होते हैं।" उन्होंने मिथिला चित्रकला में प्रयुक्त प्रमुख प्रतीकों की गहन व्याख्या करते हुए उनकी प्रासंगिकता को स्पष्ट किया। इस श्रृखंला में कला की अवधारना, कला का महत्व, कला का श्रोत, कला की प्राप्ति, कला पे चर्चा करते हुए कहा, कला के क्षेत्र में तंत्र की अवधारना, शिव से ले कर शक्ति की प्राप्ति, नर से नारायण की प्राप्ति की ओर उन्होने बताया कला एक जीवन रस की यात्रा है, जीवन को परम आनन्द की ओर ले जा सकते हैं। उन्होंने बताया की किस प्रकार हम कला को परम तत्व के साथ जोर सकते हैं। हमारे शरीर के इंद्रियों और ज्ञानेंद्रियां किस प्रकार इसे जुड़ी हुई है। किस प्रकार हमारा मानव जिवन दशावतार के साथ जुरा हुआ है, भ्रूण की उत्पति से लेकर मनुष्य जीवन के परम शक्ति की आरे प्राप्ति होती है। उन्होने राम की मर्यादा से लेकर महाभारत की विनाश तक चर्चा करते हुए हमें अपने मानव जीवन के धर्मों के बारे में वस्तृति रूप से बताया। दूसरे दिन व्याख्यान श्रृंखला में अरविंद ओझा ने बताया की नौ दुर्गा अवतार किस प्रकार तंत्र की क्रिया में उनके रूपों का वर्णन किया गया है जो कि हम अपने जीवन रूपों को दर्शाती है, उन्होने नौ दुर्गा की प्रथम देवी शैल पुत्री से लेकर महागौरी तक का वर्णन करते हुए शिव-शक्ति के स्वरूप को भी कला के माध्यम से विस्तार से जानकारी दी। व्याख्यान की। उन्होंने मां सीता के जन्म का कारण को बताते हुए उनकी मर्यादा उनकी त्याग का वर्णन किया, सीता ही लक्ष्मी का स्वरूप है। व्याख्यान के अंतिम सत्र में संस्थान के सभी आचार्यों के द्वारा पारंपरिक लोक गीत पद्मश्री बौआ देवी के द्वारा महेशवाणी, पद्मश्री दुलारी देवी के द्वारा प्रति एवं डा रानी झा के द्वारा बटगबनी लोक गीत की प्रस्तुति की गई। अंतिम सत्र में जय प्रकाश कपूर के संगीत मय वातावरण के साथ संगीतों के महत्व को बताते हुए कहा की किस प्रकार चित्रकला, संगीत कला से जुरा हुआ है। इस आयोजन में संस्थान के त्रि-वर्षीय डिग्री कोर्स के सभी सत्रों के छात्र-छात्राओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। विद्यार्थियों ने संवाद सत्र में अपनी जिज्ञासा रखीं, जिनका समाधान व्याख्याता द्वारा सारगर्भित तरीके से किया गया। कार्यक्रम के समापन पर प्रतीक प्रभाकर, कनीय आचार्य, मिथिला चित्रकला संस्थान, मधुबनी ने अतिथि व्याख्याता को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह दो दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला संस्थान के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी और उनके अध्ययन एवं सृजनात्मक दृष्टिकोण को नई दिशा प्रदान करेगी। दो दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला आयोजन के अंत में संस्थान के प्रभारी प्रशासी पदाधिकारी नीतीश कुमार के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन देकर आयोजन का समापन किया गया।

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