बाबूबरही , निज संवाददाता
सरस्वती पूजा की तैयारी जोरों पर है। विद्या की देवी मां सरस्वती जी की मूर्ती बनाने में मूर्तिकार वर्ग के लोग जी जान से इस काम में जुटे हैं। लोगों में आर्थिक रूप से सबल होने की उम्मीद है। उनलोगों का यह कहना है कि वह बचपन से मिट्टी ही ढोते आ रहे हैं। मूर्ती को ये आकार और सजीव रूप देते है। उस मूर्ति के आगे सभी सिर झुकाते हैं। बावजूद उनका जीवनयापन किसी तरह चल रहा है। एक मूर्ति को बनाने में वह कई दिनों तक कड़ी मेहनत करते हैं। उसे वे मिट्टी व रंगों के संयुक्त मेल से अद्भुत कला से मनमोहक मूर्ति बनाते हैं। कहते हैं कि उनके लिए न तो सरकार, न कोई योजना आ रही है। बाबूबरही लदनियां मुख्य सड़क पर सलखनियां गांव के पास मूर्तिकार रवि, किशन, संजय आदि ने कहा कि उनकेजीवन में खुशहाली नहीं रहती हैं आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है। मूर्तिकार प्रेमचंद ने बताया कि मूर्ति बनाने की कला हमारी रोजी—रोटी का जरिया है।