मुसीबत में आलू किसान, लागत निकल पाने पर भी आफत
खेती के बूते समृद्धि का सपना देख रहे चानन के किसान इन दिनों मुसीबत में दिख रहे है। मौसम की बेरूखी और बाजार का मजबूत न होना उनकी परेशानी का सबब बना हुआ...
खेती के बूते समृद्धि का सपना देख रहे चानन के किसान इन दिनों मुसीबत में दिख रहे है। मौसम की बेरूखी और बाजार का मजबूत न होना उनकी परेशानी का सबब बना हुआ है।
आलू का बाजार मूल्य 6-7 रुपये चल रहा है, ऐसे में किसान हताश है। केवाल मिट्टी में सोना उगलने वाली आलू की खेती से इस बार आस पूरी तरह खत्म होती दिख रही है। अनुमानत: भलूई, चुरामन बीघा, रेउटा, मननपुर, संग्रामपुर, जगुआजोर, इटौन, कुंदर, रामपुर, मलिया, धनवह आदि गांवों में 100 हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर आलू की खेती की जाती है। किसानों की मानें तो एक एकड़ आलू की खेती में 50-60 हजार की लागत आती है। खेती के लिहाज से बढ़िया उत्पादन एवं बाजार मूल्य दोनों जरूरी है। मगर आज के संदर्भ में देखे तो इस बार बाजार मूल्य एक एकड़ में 30-40 हजार रूपये की वापसी ही संभव हो पा रही है।
कोल्ड स्टोरेज बिना जल्दी बेचना मजबूरी : छोटे किसानों के लिए आलू शीतगृहों में स्टोर करना भी एक बड़ी समस्या है। किसान धुन्नी यादव, इन्द्रदेव यादव, मथुरा यादव, राजकुमार यादव, चन्द्रशेखर मंडल, राजकुमार यादव, आलोक महतो, नागेश्वर महतो, नंद किशोर महतो, केदार महतो आदि ने बताया कि छोटे एवं मझले किसान बड़ी मेहनत से आलू की खेती की, उपज भी अच्छी हुई, परन्तु शीतगृह नहीं होने से खेत से ही औने-पौने दाम में आलू को बेचना पड़ रहा है।
ट्रांसपोर्टेशन न होने से बाहर नहीं भेज पा रहे आलू : पहले यहां के किसान आलू को पश्चिम बंगाल, मुजफ्फरपुर, सियालदह, पटना, मुंगेर, भागलपुर सहित कई बड़े शहरों में मननपुर स्टेशन से बुकिंग कर बिक्री के लिए मंडी में भेजते थे, परन्तु अब ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है, क्योंकि मननपुर स्टेशन पर पिछले 15 सालों से बुकिंग कार्य बंद है।
व्यापारियों की बल्ले-बल्ले : आलू के अर्थशास्त्र में व्यापारियों की अहम भूमिका होती है। ऐसे में जब बाजार कमजोर है, स्टोरेज की समस्या के कारण किसानों को औने -पौने भाव में आलू बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। अगर आसपास कोल्ड स्टोरज यानी शीतगृह होता तो यहां के किसान आलू को शीतगृह में रखकर बाजार मजबूत होने का इंतजार कर सकते थे।