पारंपरिक छठ गीतों से माहौल भक्तिमय
बड़हिया। नगर स्थित प्लस टू उच्च विद्यालय के परिसर से शनिवार को निकल रहे संगीत

बड़हिया। नगर स्थित प्लस टू उच्च विद्यालय के परिसर से शनिवार को निकल रहे संगीत के स्वर आसपास के वातावरण को मुग्ध करते रहे। दीपावली से पूर्व ही माहौल पूरी तरह महापर्व छठ के अनुकूल बना रहा। अवसर था संगीत के स्वर साधक छात्राओं के अभ्यास वर्ग का। संगीत शिक्षक नरेश कुमार के नेतृत्व में नवम व दशम की छात्राओं ने छठ के लोकगीतों का जमकर अभ्यास किया। बेहतर लय व सुमधुर स्वर के साथ लोक गीत गा रही दर्जन से अधिक छात्राओं ने हर किसी को भाव विभोर कर दिया।
पारंपरिक लोक गीत में वर्णित बेटी के जन्म और स्त्री जीवन की जटिलताओं को बारी बारी से रखा गया था। जिसे सुन शिक्षक शिक्षिकाएँ भावुक होते रहे। स्वर और सुर के ज्ञान से अवगत करा रहे शिक्षक नरेश कुमार ने छात्राओं को पारम्परिक छठ पर्व की महत्ता को भी बताया। जिन्होंने कहा कि महापर्व छठ प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं के लिए प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। जिसमें बाजार वाद नहीं के ही बराबर है। यथा विकास के दौड़ में हम मानव चाहे जितनी दौड़ लगा लें। पर मिट्टी के चूल्हे, सूखे जलावन, ऊखल व जाते में आटे की पिसाई, नंगे पैर सिर पर दउरे लेकर नदी और तालाब तक की यात्रा आदि हमें अपने अतीत से जोड़े रखने का काम करती है। प्रत्यक्ष दिखने वाले सूर्य देव के होने से ही हम सबों का जीवन और भोजन है। जिनके नहीं होने से जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। जिनके होने से ही यह लोक है, यह पर्व उन्हीं सूर्यदेव को समर्पित है। यही कारण है कि इसे लोक आस्था का महापर्व कहते हैं। जिसमें उदय से पहले अस्त हो रहे सूर्य की पूजा होती है। जो बखूबी संदेश देती है कि काली अंधेरी रात के बाद एक नए सुबह का होना सुनिश्चित है। अभ्यास के दौरान संगीत शिक्षक के साथ सहायक रूप में पम्मी कुमारी, अंकित राज और मनीष तथा छात्रा सृष्टि भारती, संजना, करीना व खुशी आदि शामिल रहीं।
