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कुरसेला के सरस्वती मंदिर का 113 वर्ष पुराना है इतिहास

जिले में दो सार्वजनिक सरस्वती मंदिर का प्रचीनतम इतिहास रहा है जिसमें कुरसेला की सरस्वती मंदिर और बारसोई का मंदिर प्रमुख माना जाता है। प्राचीनता में कुरसेला का विशेष स्थान है वहीं भक्तों द्वारा इस...

कुरसेला के सरस्वती मंदिर का 113 वर्ष पुराना है इतिहास
हिन्दुस्तान टीम,कटिहारSun, 10 Feb 2019 12:55 AM
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जिले में दो सार्वजनिक सरस्वती मंदिर का प्रचीनतम इतिहास रहा है जिसमें कुरसेला की सरस्वती मंदिर और बारसोई का मंदिर प्रमुख माना जाता है। प्राचीनता में कुरसेला का विशेष स्थान है वहीं भक्तों द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर काफी आकर्षक और भव्य बना दिया गया है। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि कुरसेला बस्ती में वर्ष 1906 में गांव के ही सेठ रेवतलाल ने अपनी जमीन देकर सार्वजनिक सरस्वती मंदिर का विधिवत स्थापना किया था।

कहा जाता है कि इस मंदिर में श्रद्धालुओं ने जो भी मन्नतें मांगी है मां सरस्वती द्वारा उसकी मन्नतें पूरी होने कारण यहां पर पूजा अर्चना करने वालों की भीड़ दिनानुदिन बढ़ती ही जा रही है। ग्रामीणों की मानें तो वर्ष 2000 तक सेठ परिवार एवं ग्रामीणों के सहयोग से मिट्टी की प्रतिमा बनाकर श्रद्धालुओं द्वारा बड़ी आस्था के साथ पूजा अर्चना किया जाता रहा है। बाद में मंदिर के जीर्णोद्धार की बाते उठने पर सेठ परिवार की बेटी पुष्पा रूंगटा द्वारा सबसे पहले 51 हजार रुपये का दान दिये जाने के बाद जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया। वर्तमान में भक्तों के सहयोग से आकर्षक रूप में मंदिर का स्थान बनते जा रहा है। बताया जाता है कि गांव में शैक्षिक पिछड़ेपन के कारण सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया गया था।

इस बाबत ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 1956 में पूरा परिक्षेत्र प्लेग जैसे घातक रोग से जूझ रहा था लेकिन कुरसेला बस्ती सहित मंदिर परिक्षेत्र में उक्त रोग से एक भी व्यक्ति पीड़ित नहीं हुए। आधी रात को गांव की सड़कों पर घंटाध्वनि की आवाज सुनायी देती थी। बताया जाता है कि मां सरस्वती ग्रामीणों की रक्षा उस समय कर रही थी। साहित्यकार अनुपलाल मंडल एवं फणीश्वरनाथ रेणु की कर्मभूमि रहने के कारण इस परिक्षेत्र में शुरू से ही विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक व सामाजिक पृष्टभूमि पर आधारित नाटकों का मंचन होने के कारण दर्शकों में उत्साह देखा जाता था। लेकिन समय परिवर्तन होने के कारण नुक्कड़ नाटकों ने स्थान ले लिया। जबकि वर्तमान दौर में पूजा अर्चना के साथ-साथ ग्रामीण युवकों तथा आयोजक मंडल द्वारा अखंड नामधुन संकीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष स्थानीय कलाकारों द्वारा देवासुर संग्राम के तहत सुर असुर द्वारा समुद्र मंथन का जीवंत प्रतिमा इस मंदिर का आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

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