माताओं ने संतान की सलामती के लिए रखा निर्जला जिऊतिया व्रत
जिले की माताओं ने गुरुवार को अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं आरोग्य की कामना के लिए जीवित पुत्र का व्रत तीज व्रत की तरह ही निर्जला रखा। जिऊतिया व्रत को कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत को लेकर...
जिले की माताओं ने गुरुवार को अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं आरोग्य की कामना के लिए जीवित पुत्र का व्रत तीज व्रत की तरह ही निर्जला रखा। जिऊतिया व्रत को कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत को लेकर गुरुवार शाम को व्रती महिलाओं ने विधि विधान से पूजन के साथ आरती मंत्र किया। आश्विन मास की कृष्ण पक्ष के अष्टमी को यह व्रत रखा जाता है।
इस दिन माताएं अपनी संतानों को कष्टों से बचाने और लम्बी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती है। इस व्रत को शुरू करने से पहले अलग अलग जगहों पर खान पान की अपनी परम्परा रही है। सनातन धर्म में पूजा पाठ में मांसाहार का सेवन वर्जित माना गया है। लेकिन इस व्रत की शुरुआत राज्य के कई जगहों पर मछली खाकर की जाती है। कहीं पर महिलाएं गेहूं के आटे की रोटियां खाने के बजाये मरुआ के आंटे की रोटियां खाती है। जबकि इस व्रत को रखने से पहले नोनी साग खाने की परम्परा है।
लाल रंग का धागा पहन कर किया जाता है पारण: इस व्रत के पारण के बाद महिलाएं जिऊतिया का लाल रंग का धागा गले में पहनती है। व्रती महिलाएं जिऊतिया का लॉकेट भी धारण करती है। पूजा के दौरान सरसों का तेल एवं खली चढ़ाया गया। व्रत के पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाने की परम्परा है। प्रति महिलाएं नदी, तालाब या अन्य घाटों पर जाक र स्नान किया। इस बावत आचार्य अंजनी कुमार ठाकुर ने बताया कि गुरूवार के रात्रि 10:27 बजे के बाद नवमी तिथि प्रवेश करेगा। इस कारण महिलाएं शुक्रवार के ब्रह्मुर्हूत में ही पारण कर सकती हैं।