कटाव प्रभावित इलाकों में बांस के पौधे लगाने को विभाग करेगा जागरूक
कटाव प्रभावित इलाकों में बांस के पौधे लगाने को विभाग करेगा जागरूक कटाव प्रभावित इलाकों में बांस के पौधे लगाने को विभाग करेगा जागरूक कटाव प्रभावित इलाक

कटिहार, निज प्रतिनिधि। हर साल मनिहारी, आमदाबाद और प्राणपुर प्रखंड में गंगा और महानंदा नदी के कटाव से बड़ी आबादी प्रभावित होती है l बाढ़ नियंत्रण विभाग द्वारा कटाव रोधी कार्य भी चलाया जाता है l कटाव व भूमि क्षरण रोकने में बांस भी महत्वपूर्ण साबित होता है l खासकर कटीला प्रजाति का जंगली बांस विशेष तौर पर कारगर होता है l हालांकि कटाव प्रभावित इलाकों में अभी इस प्रजाति का बांस लगाने को लेकर मुख्यालय स्तर से कोई निर्देश नहीं है l बांका और भागलपुर जिले में इस प्रजाति का बांस लगाने को लेकर विभागीय स्तर से निर्देश दिया गया है l लेकिन विभाग द्वारा कटाव पर कुछ हद तक अंकुश लगाने और भूमि क्षरण रोकने को लेकर बाढ़ व कटाव प्रभावित इलाकों में बांस की खेती और सरकारी जमीन पर बांस लगाने पर जोर दिया जा रहा है l किसानों को इसको लेकर जागरूक भी किया जा रहा है l तत्काल वन विभाग द्वारा नदियों और नहर किनारे सरकारी जमीन पर बांस लगाया जा रहा है l बांस की जड़ों से मिट्टी की पकड़ होती है मजबूत नदी किनारे और आसपास के इलाकों में बांस लगाए जाने से मिट्टी की पकड़ मजबूत होती है l इससे कटाव की रफ्तार कम होने से मिट्टी का क्षरण भी रुकता है l पर्यावरण की दृष्टि से भी य़ह महत्वपूर्ण है।
पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ टीएन तारक ने कहा कि एक हेक्टेयर में बांस के 1500 तक पौधे लगाए जा सकते हैं l तीन वर्षों में बांस काटने लायक हो जाता है l बांस के साथ किसान हल्दी और अदरक की खेती भी कर सकते हैं l कटाव और भूमि क्षरण पर अंकुश लगाने के साथ ही किसान बांस की खेती से आर्थिक रूप से मुनाफा भी कमा सकते हैं l मुख्यालय को भेजा जाएगा प्रस्ताव कटाव रोकने में सबसे अधिक कारगर जंगली प्रजाति का कंटीला बांस लगाने को लेकर विभागीय स्तर से अभी कोई निर्देश प्राप्त नहीं है l तत्काल स्थानीय वेरायटी की ही बांस लगायी जा रही है l मांग किए जाने पर मुख्यालय को इससे संबंधित प्रस्ताव भेजा जाएगा। वर्जन नदी और नाहर के किनारे सरकारी जमीन पर बांस लगाया जा रहा है l स्थानीय किसानों और लोगों को भी बांस लगाने को जागरूक किया जा रहा है l मिट्टी की पकड़ मजबूत बनाने के साथ ही भूमि क्षरण रोकने में भी य़ह कारगर होता है l सत्येंद्र झा, रेंजर, वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग
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