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Hindi Newsबिहार न्यूज़जमुईThe helplessness was reflected in the face of the labor workers

श्रमिक कामगारों के चेहरे पर झलक रही थी बेबसी

हम मजदूरों को गांव हमारे भेज दो सरकार...सूना पड़ा है घर द्वार...एक मजदूर के मजबूरी के ये बोल सुनकर सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर भेजने का फैसला लिया। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से कामगारों का बिहार आने का...

Newswrap हिन्दुस्तान, जमुईMon, 18 May 2020 06:06 PM
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हम मजदूरों को गांव हमारे भेज दो सरकार...सूना पड़ा है घर द्वार...एक मजदूर के मजबूरी के ये बोल सुनकर सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर भेजने का फैसला लिया। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से कामगारों का बिहार आने का सिलसिला चल पड़ा।

सोमवार को जमुई रेलवे स्टेशन पर भी एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन आयी। समय से तीन घंटे विलंब से जैसे ही ट्रेन प्लेटफार्म पर लगी ट्रेन में बैठे श्रमिकों ने हाथ हिलाकर प्रशासनिक अधिकारियों का शुक्रिया अदा किया। लेकिन जैसे ही श्रमिकों ने ट्रेन से उतरना प्रारंभ किया तो वहां का मंजर ही बदल गया। कामगारों के चेहरों पर उनकी बेबसी और लाचारी साफ झलक रही थी। इन कामगारों को देख मानो ऐसा लग रहा था जैसे वो काल के गाल से वापस आये हों और उन्होंने एक नई जिंदगी की शुरुआत आज से ही की हो। सर पर भारी बोझ, कंधे पर बैग, पैरों में चप्पल पहने हमारे कामगारों का घर की ओर बढ़ता एक-एक कदम बहुत कुछ कह रहा था। रोजी-रोटी की तलाश में अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर गए इन कामगारों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें ऐसा भी देखने को मिलेगा। सर पर बोझ उठाए कामगार और गोद में बच्ची लिए महिला की जिंदगी को कोरोना ने तबाह कर दिया। ये तस्वीर तो एक बानगी भर है। श्रमिक स्पेशल ट्रेन के लगने के बाद जमुई रेलवे स्टेशन पर ऐसी कई तस्वीरें देखने को मिली जिसे देख रोंगटे खड़े हो गए। कई कामगारों से इस संवाददाता ने बातकर उनके दर्द और बेबसी को समझने की कोशिश की और ये भी जाना कि कैसा रहा उनका दादरी से जमुई तक का सफर। लक्ष्मीपुर प्रखंड के मटिया के रहने वाले याकूब अंसारी ने बताया कि घर आकर बहुत ही सकून मिल रहा है। उकोरोना की मार से ये कामगार इतने तबाह हुए कि घर से बाहर रोजगार को लेकर जाने की सोच ही इन सबों से मन से निकाल दी। जमुई तक के सफर के बारे में बताया कि रास्ते में विभिन्न प्रदेशों की सरकारों द्वारा खाने-पीने का बढ़िया इंतजाम किया गया था।

उन्हें रेलवे का किराया भी नहीं देना पड़ा। मटिया के ही रहने वाले इमरान का कहना है कि जैसे भी रहेंगे अपने घर में ही रहेंगे लेकिन प्रदेश से बाहर रोजगार के लिए अब कभी नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि अपने ही प्रदेश में रोजगार की तलाश करेंगे या फिर अपना कोई व्यवसाय प्रारंभ करेंगे।

ऐसे में जब इतनी संख्या में प्रवासी कामगार कोरोना की मार के कारण बिहार आ चुके हैं तो सरकार की जिम्मेवारी बनती है उन सबों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करें। देखना है सरकार कितनी जल्द इन प्रवासी कामगारों को रोजगार उपलब्ध कराती है।

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