सब्जी की खेती से बदल गयी नीमनवादा गांव की तस्वीर
जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित दौलतपुर पंचायत के नीमनवादा गांव की तस्वीर बदल गयी है। पिछले 15 वर्षों से सब्जी के उत्पादन में छोटा सा यह गांव एक उदाहरण बन गया...
जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित दौलतपुर पंचायत के नीमनवादा गांव की तस्वीर बदल गयी है। पिछले 15 वर्षों से सब्जी के उत्पादन में छोटा सा यह गांव एक उदाहरण बन गया है।
गांव के 60-70 किसानों की आय लाखों में है। उस गांव में धान ,गेहूं की पैदावार कम परंतु मौसमी सब्जी की खेती इतनी अधिक होती है कि कई गांव के लोग सब्जी की खेती को देखने पहुंच रहे हैं।
वर्ष-1999 में प्याज की फसल में किसानों को हुई नुकसान के बाद किसान जागरूक हो गये। ट्रांजिस्टर पर खेती-बारी की चर्चा को सुनकर किसानों ने नई-नई तकनीक अपनायी और सब्जी उत्पादन में गांव को अब्बल बना दिया। गांव के किसान प्रियरंजन कुमार उर्फ रामप्रवेश की मानें तो वर्ष 1999 में प्याज की खेती में उन्हें दो लाख रूपये का नुकसान हुआ था। लगातार दूसरे साल भी यही हाल हुआ। खेती से मोहभंग हो चुका था। कभी भगवान को कोस रहे थे तो कभी अपनी किस्मत को।
इस बीच ट्रांजिस्टर पर प्रतिदिन शाम में 6:30 से 7:30 तक गांव के किसान खेतीबारी की चर्चा सुनने लगे। चर्चा में हाईब्रीड किस्म की खेती के बारे में बातें होती थी। किसानों में खेती के प्रति नाकारात्मक सोच साकारात्मक होने लगा। वहां के किसान जमुई के बीज दुकानों में ट्रांजिस्टर पर बतायी गयी बीज के किस्म की डिमांड करने लगे। किसान के डिमांड पर बीज भंडार के लोग हाइब्रीड किस्म के बीज लाने लगे।
भिंडी, गोभी खीरा, करेला नेनुआ की खेती से बढ़ा आत्मविश्वास
भिंडी, गोभी, खीरा, करेला, नेनुआ, कद्दू, मिर्च, टमाटर प्याज की खेती शुरू हुई। पैदावार अच्छी होने से किसानों में आत्मविश्वास का भाव जग गया। आज उन्हीं किसानों द्वारा ब्रोकली, लालबंधा, लाल मूली, सलाद बंधा सहित कई प्रकार के नए सब्जी की खेती शुरू की गयी। किसान सुशील कुमार, सुरेन्द्र महतो, द्वारिक प्रसाद, विनय कुमार आदि ने बताया कि यहां सभी जाति के लोग खेती करते हैं। किसी भी किसान की खेती दो एकड़ से कम नहीं है। जिन्हें अपना जमीन नहीं हैं वे लीज पर जमीन लेकर खेती कर रहे हैं। किसानों ने बताया कि एक कट्ठा जमीन पर सब्जी की खेती करने में तीन से चार हजार रूपये का खर्च आता है। उस एक कट्ठे जमीन पर होने वाले पैदावार से उन्हें न्यूनतम दस हजार और अधिकतम 15 हजार रूपये तक आमदनी होती है। किसानों ने बताया कि इस गांव में खीरा की खेती सबसे अधिक होती है। इस बार ठंड अधिक होने के कारण फसल तैयार होने में देर हुई है।